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आर्य सदाचार पालनीय
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स्थानमुत्सृज्य गच्छन्ति सिंहाः सत्पुरुषा द्विजाः।
तत्रैव निधनं यान्ति काकाः कापुरुषा मृगाः ॥ सिंह सत्पुरुष तथा ब्राह्मण लोग अपनी जन्मभूमिके माधारण स्थानको त्यागकर उत्कृष्ट योग्यता तथा स्थान ढूंढने के लिये विदेश चले जाते हैं । काक कापुरुष तथा मृग उत्पत्तिस्थानके मोहमें रहकर जहां पैदा होते हैं वहीं मरते हैं।
द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सपों बिलशयानिव ।
अरक्षितारं राजानं, ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ॥ भूमि बिलशयी जीवोंको खा डालनेवाले सर्प के समान प्रजाकी रक्षा न करने वाले राजा तथा ज्ञानार्जन के लिये प्रवास न करनेवाले ब्राह्मणको निगल
( आर्य सदाचार पालनीय
आर्यवृत्तमनुतिछेत् ।। ३१० ॥ मनुष्य आयस्वभावको सदा सुरक्षित रक्ख । विवरण-- विद्या, विनय, नोति, धर्म तथा ज्ञान से सम्पन्न कोग आर्य सभ्य, सजन या साधु कहाते हैं । वशिष्ठने कहा है
कर्तव्यमाचरन् काममकर्तव्यमनाचरन् । तिष्ठति प्रकृताचारे यः स आर्य इति स्मृतः ॥ वशिष्ठ मानवोचित कतव्यपालन करनेवाला तथा यथेच्छाचारी अमानवोचित कर्म करने से बचकर विचारशीलों की प्राचारपरम्पराको अक्षुण्ण रखने वाला कार्य कहाता है।
मार्य चाणक्यको भारतको वैदेशिक आक्रमणोंसे बचानेकी जैसी धुन थी आज देशके क्षुब्ध वातावरणको, देश में मानवताके नामपर काम करनेवाली शक्तियों को झकझोर कर खडा कर देनेवाली तथा अनार्यताको कुचल डालनेवाली धुन रखनेवाले मार्य पुरुषों की आवश्यकता है। मार्य चाणक्य