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असमान विवाहकी दुखदता
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लिये उच्च कुल छांटना भावश्यक है। आदर्शप्रेमी, संयमी, जितेन्द्रिय लोग ही समाज में उच्च मानने योग्य हैं । मादर्शप्रियता संयम तथा जिते. न्द्रियता ही उच्चकुलका लक्षण है । भादर्शच्युत स्वेच्छाचारी लोग नीचकुल समझे जाने चाहिये । भादर्शच्युति तथा स्वेच्छाचारिता ही कुलोंकी निम्नगामिता है । उच्चता मनुष्यका स्वभाव तथा पतन उसकी अस्वाभाविक स्थिति है। इसलिए गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश करते समय वैवाहिक संबन्धके इस कल्याणकारी संबंधको ध्यानमें रखकर ही गाईस्थ्य जीवन में प्रवेश करना चाहिये। ___ यदि गाईस्थ्य धर्मको कलंकित करनेवाले पतित थानों के साथ संबंध स्थापित न करने की सावधानी नहीं बरती जायगी तो समाजका पतित होजाना अनिवार्य होजायगा । समाजमें मनुष्यतारूपी उच्च कुलको प्राधान्य तथा पूज्य स्थान दिय रहना ही विवाहका भादर्श है । इस भादर्शको समा. जक ऊपर शासन के रूपमें सुप्रतिष्ठित रखकर इसे नीचतापंशोधक दगड के रूप में क्रियाशील बनाये रखना हो समाजपति विज्ञ लोगों का ध्येय होना साहिये । अपरिणत बुद्धि विवादार्थी लोगों के निर्णयों का रूपज या धनज मोहसे विपथगामी हो जाना अपरिहार्य है । इस दृष्टि से पारिवारिक जीवनको विशुद्ध रखने के लिये वैवाहिक संबंध में उच्चताको रक्षाका सुप्रबन्ध रखना विज अभिभावकों का उत्तरदायित्व है । 'गृहस्थः सदृशी भार्यां विन्देत' गृहस्थ होने का इच्छुक आयु, रूप, गण, जाति, धर्म तथा शील में समान पत्नीको प्राक्ष करे । विवाहका अर्थ विशेष प्रकारका सयमी गाईस्थ्यधर्म स्वीकार करना है । समाजानुमोदित वैध पति तथा वैध पत्नी होना तथा देवल समाजको अपना योग्य प्रतिनिधि देनेकी भावनासे इस धर्मको अपनाना हो गाईस्थ्य जीवन की विशेषता है। , शिष्टाचार तथा शास्त्रकी अनुसारिता ही पति-पत्नियोंकी वैधता मानी जाती है । जो आयु यश तथा पुण्य सुरक्षित रखना और समाजको सदगुणी सन्तान देना चाहें वे समाजानुमोदित दाम्पत्य संबंधमें सीमित रहें, अपने गृहस्थ जीवनको त्याग तथा संयमके अभ्यासकी तपोभूमि बनाकर उसे