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________________ असमान विवाहकी दुखदता २५१ लिये उच्च कुल छांटना भावश्यक है। आदर्शप्रेमी, संयमी, जितेन्द्रिय लोग ही समाज में उच्च मानने योग्य हैं । मादर्शप्रियता संयम तथा जिते. न्द्रियता ही उच्चकुलका लक्षण है । भादर्शच्युत स्वेच्छाचारी लोग नीचकुल समझे जाने चाहिये । भादर्शच्युति तथा स्वेच्छाचारिता ही कुलोंकी निम्नगामिता है । उच्चता मनुष्यका स्वभाव तथा पतन उसकी अस्वाभाविक स्थिति है। इसलिए गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश करते समय वैवाहिक संबन्धके इस कल्याणकारी संबंधको ध्यानमें रखकर ही गाईस्थ्य जीवन में प्रवेश करना चाहिये। ___ यदि गाईस्थ्य धर्मको कलंकित करनेवाले पतित थानों के साथ संबंध स्थापित न करने की सावधानी नहीं बरती जायगी तो समाजका पतित होजाना अनिवार्य होजायगा । समाजमें मनुष्यतारूपी उच्च कुलको प्राधान्य तथा पूज्य स्थान दिय रहना ही विवाहका भादर्श है । इस भादर्शको समा. जक ऊपर शासन के रूपमें सुप्रतिष्ठित रखकर इसे नीचतापंशोधक दगड के रूप में क्रियाशील बनाये रखना हो समाजपति विज्ञ लोगों का ध्येय होना साहिये । अपरिणत बुद्धि विवादार्थी लोगों के निर्णयों का रूपज या धनज मोहसे विपथगामी हो जाना अपरिहार्य है । इस दृष्टि से पारिवारिक जीवनको विशुद्ध रखने के लिये वैवाहिक संबंध में उच्चताको रक्षाका सुप्रबन्ध रखना विज अभिभावकों का उत्तरदायित्व है । 'गृहस्थः सदृशी भार्यां विन्देत' गृहस्थ होने का इच्छुक आयु, रूप, गण, जाति, धर्म तथा शील में समान पत्नीको प्राक्ष करे । विवाहका अर्थ विशेष प्रकारका सयमी गाईस्थ्यधर्म स्वीकार करना है । समाजानुमोदित वैध पति तथा वैध पत्नी होना तथा देवल समाजको अपना योग्य प्रतिनिधि देनेकी भावनासे इस धर्मको अपनाना हो गाईस्थ्य जीवन की विशेषता है। , शिष्टाचार तथा शास्त्रकी अनुसारिता ही पति-पत्नियोंकी वैधता मानी जाती है । जो आयु यश तथा पुण्य सुरक्षित रखना और समाजको सदगुणी सन्तान देना चाहें वे समाजानुमोदित दाम्पत्य संबंधमें सीमित रहें, अपने गृहस्थ जीवनको त्याग तथा संयमके अभ्यासकी तपोभूमि बनाकर उसे
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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