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चाणक्यसूत्राणि
नीचाश्रयो न कर्तव्यः कर्तव्यो महदाश्रयः । हीनका आश्रय न करके शक्तिसम्पन्न दयालुका माश्रय करना चाहिये।
उपासना चन्महतामुपासना। यदि किसीका आश्रय लेना ही पडे तो विशाल हृदयनालेका ही लेने में कल्याण है।
(आश्रयणीय प्रभुके गुण ) विशेषज्ञं स्वामिनमाश्रयेत् ।। २८३ ॥ गुणों का आदर करनेवाले, गुणीको पहचाननेवाल स्वानीकी ही सेवा करना स्वीकार करे ।
विवरण- गुणो सदा गुणादरी न्यनिको ढुंढा करता है । गुणादरी स्वामीका माश्रय चाहनेवाले का स्वयं गुमी होना अनिवार्य होता है । गुणादरी स्वामीको सेवामें गुणीके मनोरथका पूर्ण होना निश्चित होता है ।
पुरुषस्य मैथुनं जरा ॥ २८४॥ स्त्रीणाममैथुनं जरा ॥२८५॥ ( असमान विवाहसे गाहर यजीवन की दुखदता ।
न नीचोत्तमयोविवाहः ।। २८६ ।। नीच और उत्तम वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होने चाहिये । विवरण ---- विवाहप्रथाका उद्देश्य समाजमें शान्तिकी शृंखल! बनाए खना है। विवाहप्रथा न रहे तो समाज निर्बाध व्यभिचारका क्षेत्र बन लाता है । मनुष्यकी वैवाहिक प्रवृत्तिमें संयमका सनिवेश करके समाज. कल्याण करना ही मनुष्याताका आदर्श है। इस मादर्शको नष्ट न होने देने तथा समाजको असंयमके मार्गपर न चलने देने के लिये ही विवाहप्रथाके रूप में सामाजिक शासन प्रचलित हुआ है । प्रत्येक सामाजिक व्यवहारमें पात्रापात्र योग्यायोग्यका विचार करना मनुष्य का कर्तव्य है । वैवाहिक संबन्धके