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चाणक्यसूत्राणि
होता है । बुद्धिमान व्यक्ति समाज की शक्ति होते हैं। राज्यसंस्थाका निर्माण करना इन्हीं लोगों का उत्तरदायित्व होता है । राजा अपनी राज्यसंस्थामें मष्टके बुद्धिमान् व्यक्तियोंको मुख्य स्थान देकर सच्ची राष्ट्र सेवा करने में सब ही समर्थ होसकता है जब कि वह समाजके बुद्धिमान् लोगों को निर्धनताका आखेट बनने से सुरक्षित रखनेका उचित प्रबन्ध करे।
धन स्वभावसे ही धनोपासकों के पास रहता है। धन ही धनोपासकों के जीवनका ध्येय होता है । धनोपासक धन के लिये अपने मन की मूल्यवान पवित्रताको बलिदान करचुका होता है । इसके विपरीत मनकी पवित्रता या सचाई लक्ष्यवालेको मनकी पवित्रताको सुरक्षित रखने के लिये धनका बलि. दान देदेना पडता है । सच्चे बुद्धिमान् वे ही लोग हैं जो अपनी सचाईको सुरक्षित रखकर मनुप्यतानामके सच्चे धन के धनवान् रहना ही अपना लक्ष्य बनालेते हैं तथा इपीसे वे समाज में श्रद्धाकी दृष्टि से देखे जाते हैं ! ऐसे लोग राष्टके भूषणस्वरूप होते हैं। ये लोग समाजमें मनुष्यताको जीवित रखने के नामपर मनुष्यताका संरक्षण करनेवाली राज्यसंस्था बनाने को अपने जीवनका सर्वश्रेष्ठ, सर्वमहान् कर्तव्य बनालेते हैं ।
परन्तु ध्यान रहे कि ऐसे समाजसेवक बुद्धिमान व्यक्तियों का निर्धन होना अनिवार्य है। इन महामना लोगोंके धनाभावको दूर करके इन्हें अपनी राज्यसंस्थाके मुख्य स्तम्भ बनाये रखने के लिये उचित प्रबन्ध करना राजाका राष्टहितकारी तथा स्वहितकारी कर्तव्य है । यदि राज्यको निर्विघ्नतासे चलाना हो तथा उसे प्रजाकल्याणकारी मार्गपर सु-प्रतिष्ठित रखना हो तो राजाको राष्ट्र के निधन परन्तु बुद्धिमान व्यक्तियोंकी जीवनयात्रामें यथोचित सहयोग देकर राष्ट्र के लिय उनका बौद्धिक धार्मिक सहयोग प्राप्त करना ही चाहिये । बुद्धिमान् व्यक्तियोंके धनहीन होने पर भी उनकी बुद्धि समाज या राष्ट्रका अक्षय धन है। इन बुद्धिमान व्यक्तियों की धनहीनताका भी राष्ट्रीय दृष्टि से असाधारण मूल्य है । इन लोगोंकी धनहीनता समाज में बुद्धि की संरक्षिका है। ये लोग समाजमें बुद्धि के संरक्षक हैं। क्योंकि ये