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परिणामसे हितबुद्धि पहचानो
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मूढ मानव अपनी बुद्धिहीनतासे रहस्यमें कही हुई बातको उकेकी चोट कहना और उसे सकलजनश्रोतव्य बनादेना चाहा करता है।
मूढ के पेटमें बात नहीं पचती । उसे रहस्य की बात सुनते ही कुपच होकर बातका अतिसार होजाता है।
(परिणामसे हितबुद्धि पहचानो )
अनुरागस्तु फलेन सूच्यते ॥२१०॥ अनुराग मौखिक सहानुभूतियोंसे सूचित न होकर फलोंसे सूचित होता है।
विवरण-- अनुरागीके अनुरागका प्रमाण बातोंमें ढूंढना भ्रामक है । अनुराग तो आचरणों और फलोंसे जानने योग्य वस्तु है । किसीके शाब्दिक अनुरागका विश्वास करना मूढता और भोलापन है। __ समाजके प्रत्येक सदस्यका राष्ट्रानुरागी अर्थात् सार्वजनिक कल्याणमें अपना कल्याण समझनेवाला सेवक होना अत्यावश्यक है। समाजके प्रत्येक सदस्यके सार्वजनिक कल्याणमें अपना कल्याण समझनेवाला होने पर ही समाजमें शान्ति सुरक्षित रहसकती है। समाज की यह शान्ति-कामना ही गरसेविका राज्य संस्थाके रूपमें क्रियात्मक रूप लेकर रहती है। राष्टसंस्था राज्यका शाब्दिक दिखावामात्र अनुराग रखनेवाली न हो किन्तु व्यव. हारमें आनेवाला वास्तविक अनुराग रखनेवाली हो तब ही राष्ट्रका कल्याण होना संभव है। सच्चा अनुराग ही मानव-समाजको संगठित रखनेवाला सुदृढ बन्धन है। __ प्रकृतमें राज्याधिकारियोंका निर्वाचन इस उद्देश्यको सामने रखकर करना चाहिये कि राज्यसंस्थामें सच्चे राष्ट्र-हितैषी ही सम्मिलित होने पायें । जिन्हें निर्वाचित किया जाय उनकी राष्ट्र-हितैषिताके यथोचित प्रमाण पाये बिना किसीका भी निर्वाचन न होना चाहिये । किन्ही राज्याधिकार-लिप्सों के च्याख्यान, नात्मप्रचार, साम्प्रदायिक या जातिगत स्वार्थमूलक दलबद्धता राज्याधिकार संभालनेको योग्यता कदापि न माननी चाहिये किन्तु निःस्वार्थ