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सच्चा धन
बदले में उपकार पाने की भाशा न रखकर, केवल कर्तव्य बुद्धि से देश, काल, पात्र देखकर दिया हुभा दान शुद्ध साविक दान है । प्रत्युपकारके लिये या फल भावनासे तथा क्लेशपूर्वक दान राजप्स दान हैं। अदेश, अकाल तथा मपात्रको असत्कार और अवज्ञाके साथ दिया दान तामप्त दान होता है ।
( अनार्यप्रचलित व्यर्थ आचरण अनर्थजनक ) नार्यागतोऽर्थवद्विपरीतोऽनर्थभावः ॥ १५६ ॥ अनार्य ( अज्ञानी ) समाज में प्रचलित परम्परागत व्यर्थ आच रण ही मानवजीवननाशक अनर्थ है।
विवरण ---- अनायोचित व्यर्थ भाचरणोंसे बचने में ही मानवजीवनको सार्थकता है । उन्नतिकामी मनुष्य रुधिविरुद्ध नाच, गान, खेल, तमाशे तथा ताश, शतरंज, जुना आदि व्यर्थ भनाय माचरणोंसे बचे ।
(सचा धन ) __ ( अधिक सूत्र ) न्यायागतोऽर्थः । न्याय अर्थात् धर्म सुनीति और समुचित उपायांसे समुपार्जित धन ही धन कहलाने योग्य है।
विवरण- अन्याय मनीति तथा दूसरोंको उद्विग्न करडालनेवाले अनु चित उपायों तथा उद्वेजक ढंगोंसे उपार्जित धन धन के रूपमें महान् अनर्थ है । 'परित्यजेदर्यकामो यो स्यातां धर्मवर्जिती । ' मनुष्य धर्महीन अर्थ और धर्महीन कामसे सुखी होने की आशा न बांधे । धर्माचारहीनोंका धन मल. संचय मात्र है।
( अधिक सूत्र ) तद्विपरीतोऽर्थाभासः । हीन उपायों मार्गों या प्रकारोंसे प्राप्त धनको अर्थरूपधारी अनर्थ मानना चाहिये।