________________
गुणियोंका आदर करो
चोट नहीं करता तब तक वह सत्य ही नहीं होता। वह सत्य क्या हुआ जो अपराधी मनपर शल्यक्रिया न करे और अपराधी श्रोताको सहसा सह्य होजाय । सत्यकी इस कर्णकटुता और अग्राह्यताको बचानेका एकमात्र उपाय यही है कि मनुष्य सत्यका बखान जिस किसीके सामने न करके उसे केवल सत्यप्रेमी श्रद्धालु से कहे ।
१५१
सत्य के साथ जैसे अश्रद्धेयताका दूषण लगा है इसी प्रकार उसके साथ कटुता और तेजस्विता नामके दो ऐसे कठोर स्वभाव संयुक्त हैं जो सत्यको पातित्यप्रेमी सर्वसाधारणका प्रिय नहीं बनने देते । सत्यप्रेमीको सत्यके साथ उसकी तेजस्विता और कटुता भी विवश होकर अपनानी पडती है । सत्य असत्यप्रेमियोंको अवश्य ही कटु और अग्राह्य लगता है । सत्य
सत्यप्रेमीकी भूलों या भ्रान्त धारणाओंपर मर्मभेदी घातक प्रहार करने - वाला होनेसे सदा ही उसके अप्रेम और अस्वीकृतिका भाजन बना रहता है । सत्यप्रेमी कुछ थोडेसे लोग ही उसकी तेजस्विता और कटुताको सहार सकते हैं । इसी कारण कहा जाता है कि 'अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता 'च दुर्लभः ।' कटु सत्यके श्रोता और वक्ता दोनों ही दुर्लभ होते हैं। ऐसे ही लोग सभ्य सुनने और सुनानेके यथार्थ अधिकारी होते हैं । सत्यको कटुवा माननेवाले लोग सत्य के अनधिकारी हैं ।
( गुणियों का आदर करना सीखो )
नात्पदोषाद बहुगुणास्त्यज्यन्ते ॥ १६९ ॥
किसीके साधरण दोष देखकर उसके महत्वपूर्ण गुणोंको अस्वीकार नहीं करना चाहिये ।
विवरण - किसी में कुछ साधारण दोष दीखें तो उसके अनेक महत्व'पूर्ण गुणोंकी उपेक्षा न करनी चाहिये । यदि सच्चे गुणी मनुष्यका कोई व्यवहार दूषित लगता हो या न रुचता हो तो यह निश्चय है कि यह गुणीके चरित्रको न समझने का दोष है । जब उसपर शान्त कालमें निर