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प्रधान दोष समस्तगुणनाशक
विवरण - सत्यनिष्ठ लोग अपयश फैलानेवाले अपमानसे मिलनेवाले ऐश्वयको तृणके समान अस्वीकार करदेते हैं । वे उस ऐश्वर्यसे अपने चरित्रपर कलंक लगता तथा अपने सम्मानकी हानि होती देखकर उसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करते। "मानो हि महतां धनम् ।" मान ही महापुरुषोंका धन है । वे अपने मानधनकी रक्षा अपने प्राणपणसे भी करते हैं। ये स्वाभिमानके साथ अपने न्यायागत धनसे सन्तुष्ट रहकर अपने मानधनकी रक्षा करके निर्धन जीवन बितानेको सौभाग्य मानते और इसीमें स्वाभिमान अनुभव
करते हैं ।
पाठान्तर
अवमानागतमैश्वर्य
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( एक प्रधानदोष समस्त गुणनाशक )
बहूनपि गुणानेको दोषो ग्रसते ।। १६१ ।।
मनुष्यका एक भी दोष बहुत से गुणोंको दोष बनाडालता है । विवरण -- एक दोष दूसरे गुणोंको छुडवा देता है । मनुष्य में एक भी दोष होना सिद्ध कर रहा है कि दूसरे गुण गुणका दिखावा ही दिखावा हैं। वे गुण उस दोष जैसे ही अनिष्टकारी हैं। गुणदोषों का वध्यघातकभाव होने से दोनोंका एकत्रावस्थान असंभव है । यों भी कह सकते हैं कि जिसमें एक भी दोष है उसमें कोई भी गुण नहीं है। गुण, दोष दोनोंका ही यह स्वभाव है कि ये यूथभ्रष्ट होकर नहीं रहते । इसलिये दोषका संपूर्ण बहिष्कार करके रखने में ही मानवका कल्याण या निर्दोषता संभव है। किसी कविके शब्दों में 'एको हि दोषो गुणराशिनाशी ।' एक भी दोष मनुष्यकी गुणराशिको नाश करडालता है | यदि किसी शासक या राजकर्मचारीमें राजशक्तिके दबाव से व्यक्तिगत धन बटोरनेकी प्रवृत्ति है तो उसके अन्य समस्त गुण नपुंसक
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होजाते हैं ।
चाणक्य इस सूत्र समाजको दीनावस्थाकी ओर संकेत करके देश में से बडे प्रयत्न से ऋजुओं को ढूंढ ढूंढकर राज्यसंस्था में रखनेकी प्रेरणा दे रहे हैं ।
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