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दूसरोंका उत्तरदायित्व स्वार्थमूलक
राजा या राजकर्मचारी जहां अपराधी हैं वहां उन्हें अपराध करने देने वाला राष्ट्र ही उस पापका उत्तरदायी है । क्योंकि जनताके सहयोगके बिना कोई भी राजा या राजकर्मचारी राष्ट्रीय धरोहरका स्वार्थमूलक उपयोग कर ही नहीं सकता। जो राज्याधिकारी इस पवित्र धरोहरका दुरुपयोग करते हैं, वे राष्ट्रको तो हानि पहुंचाते ही हैं साथ ही स्वयं भी नष्ट होनेसे नहीं बचपाते । इसलिये नहीं बचपाते कि उनके तथा राष्ट्रके कल्याणमें कोई अन्तर नहीं है । यदि उन्होंने राष्ट्रको हानि की है तो वह उनकी भी तोहानि ही है। यदि वे राष्ट्र के साथ न्याय करें तो उसमें राष्ट्र के साथ उनका भी तो कल्याण हो। क्योंकि उनका कल्याण राष्ट्र कल्याणसे पृथक कोई वस्तु नहीं है । कल्याणको व्यक्तियों में खण्डित नहीं किया जा सकता। कल्याण अखण्टु वस्तु है। कल्याण सबके साझेको वस्तु है। जिसमें एकका कल्याण है उसमें सभीका कल्याण है ।
इस दृष्टि से राष्ट्रके सच्चे प्रतिनिधि विज्ञ लोगोंका कर्तव्य होता है कि सबसे पहले राष्ट्रको अपना हित अहित तथा शत्रु मित्र पहचानना सिखायें, सुयोग्य हाथों में राज्यशक्तिरूपी राष्ट्रीय धरोहर सौपें और इसे अयोग्य हाथोंमें न रहसकने की सुदृढ व्यवस्था करें। इतना किये बिना राज्यशक्तिको अयोग्य हाथों में जानेसे नहीं रोका जासकता ।
राजसत्ताका निर्वाचन रायका ही उत्तरदायित्व है। जहां राजसत्ता दोषी है वहां राष्ट्र ही अयोग्य हाथों में सत्ता सौंपने तथा रहने देनेका उत्तरदायी है। जब कि राष्ट्रकी सम्र्मातसे राज्यशक्ति बननेकी परिपाटी है तब राष्ट्र शक्ति बननेका अधिकार सार्वजनिक कल्याणबुद्धि रखनेवाले सेवकों को ही सौंपना चाहिये । उसे अविवेकी हाथों में नहीं जाने देना चाहिये । राष्ट्रशक्तिके राष्ट्रनिर्माणके काममें ही प्रयुक्त होनेकी सुदृढ व्यवस्था होनी चाहिये । • मार्य चाणक्य इस सूत्रके द्वारा लोकमतसे कहना चाहते हैं कि राष्ट्र राष्ट्रीय धरोहर अपने पास रखनेवालोंके व्यक्तिगत स्वार्थोकी ओरसे पूरा सचेत रहे और राज्यसंस्थाको उनका व्यक्तिगत स्वार्थ पूरा होने के काममें न माने दे।