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व्यवस्थापक लोग भोले न बनें
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लोग देशपर आक्रमण करनेवाले शत्रुओंसे साधुपनका प्रमाणपत्र लेनके लिये सरलता, अहिंसा भादिके नामसे देशके साथ कपट और उसकी हिंसा कर बैठते हैं।
क्षीरार्थी वत्सो मातुरूधः प्रतिहन्ति ॥ १२७॥ दुग्धपानार्थी गोवत्सको माताके स्तनोंपर आघात करना पडता है।
विवरण- जैसे दुग्धार्थी वत्स अपनी आवश्यकतासे विवश होकर अपनी प्यारी गोमाताके स्तनोंपर निर्मम प्रहार करता दीखनेपर भी उसका दूध पीता रहता है तथा उसके कोमल स्तनोंको पीडित करता दीखनेपर मो पीडित न करके उसे अपने सखस्पशीसे आनन्दित भी करता है, इसी प्रकार राष्ट्रपालनार्थी राजा राष्टरक्षा नामक कठोर कतन्यसे विवश होकर बाह्यदृष्टि से अधर्म दीखने या नृशंस समझे जानवाले कापटिक तथा आभिचारिक प्रयोगोंसे राष्ट्रमाताके द्रोहियोंका पूर्ण विनाश तथा दमन करते समय अधर्माचारीमा दीखनेपर अपनी सत्यनिष्ठतासे अपनी धर्ममाताको आनन्दोद्वेल्लित करता रहता है । वह देशद्रोहियों के साथ व्यवहार के समय असरल, अनुदार, सतक उनसे पूरा बदला लेनेवाला उनके प्रति क्रोधको कभी न भूलनेवाला, उनक मायाजाल से बचे रहने के लिये सत्यको छिपाये रखनेवाला, पापकी भर्सनाके लिये कठोरभाषी, निर्दयव्यवहारी तथा पूरा कृपण बनकर रहता है । इतना किय बिना साधुपरित्राण तथा असावुदमन संभव नहीं है। पापदमनके व्यावहारिक क्षेत्रमें दूसरोंसे धोका दिलानेवाली सरलता उदारता, भोलेपन, क्षमा, मक्रोध, सत्य, प्रियभाषण, दयालुव्यवहार आदि सद्गणोंके प्रदर्शनका कोई स्थान नहीं है । प्रत्येक गुणके प्रदर्शनके अलग अलग क्षेत्र होते हैं । सरलतः सरलोंके ही साथ व्यवहारमें लानेयोग्य गुण है । सरलता, सरलोंका ही एकाधिकार है । असरल देशद्रोही लोगों को देशप्रेमी स्वधर्मनिष्ट लोगों से सरल बर्ताव पानेका कोई अधिकार नहीं है।