Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[५६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[दकारादि
(३०४७) दशमूलादिघृतम् (४) | काथ ८ सेर, घी २ सेर, कल्ककी सब चीजें स
(वं. से. । अति.) | मान भाग मिश्रित १३ तोले ४ माशे।) विश्वौषधस्य गर्भण दशमूलजले शृतम् । । (३०५०) दशमूलाचं घृतम् (१) घृतं निहन्त्यतीसारं ग्रहणी पाण्डुकामलाम् ॥ ( वृ. नि. र. । क्षय; वृ. मा; वं. से. । राजयः; सांठका कल्क १३ तोले ४ माशे, घी २
ग. नि. । स्वरभे.) सेर, दशमूलका काथ ८ सेर ।(४ सेर दशमूलको दशमूली शृतात्क्षीरात्सपियदुदियान्नवम् । ३२ सेर पानीमें पकाकर ८ सेर शेष रक्खें।) सपिप्पलीकं सक्षौद्रं तत्परं स्वरशोधनम् ॥
___ सबको एकत्र मिलाकर काथ जलने तक शिर:पाश्वणिशूलनं कासश्वासज्वरापहम् । पकावें।
सिद्धं जगति विख्यातं शोषिणां परमौषधम् ॥ ___यह घी अतिसार, संग्रहणी, पाण्डु और दशमूल २० तोले, गायका दूध ४ सेर, कामलाको नष्ट करता है।
पानी १६ सेर । सबको एकत्र मिलाकर पकावें । (३०४८) दशमूलादिघृतम् (५) जब पानी जल जाय तो दूधको छानकर उसका
(वं. से., वृ. नि. र.; यो. र. । नेत्ररोग.) । दही जमा दें। वातिके तिमिरे पक्वं दशमूलीरसे घृतम् । इस दहीसे निकाले हुवे नवनी .पी (मक्खन त्रिच्चूर्णसमायुक्तं विरेकार्थ प्रयोजयेत् ॥ । -नवनीत ) में पीपलका चूर्ण और शहद मिला
वातज तिमिर रोगमें दशमूलके काथ से | कर सेवन करनेसे शिर, पसली, और शरीरकी पके हुवे घीमें निसोतका चूर्ण मिलाकर उससे | पीड़ा तथा खांसी, श्वास और ज्वर नष्ट होता है। विरेचन कराना चाहिए।
यह अत्यन्त स्वर शोधक और शोष रोगि(दशमूलका काथ ४ सेर, घी १ सेर । मात्रा | योंके लिए परमौषध है। ३-४ तोले । निसोतका चूर्ण ३ से ६
( मात्रा-घी १ से २ तोले तक, शहद ६ माशे तक ।)
माशेसे १ तोले तक, पीपलका चूर्ण १ से २ (३०४९) दशमूलादिघृतम् (६) माशे तक ।)
( यो. र.; वं. से.; ग. नि. । उदररो.; वृ. । (३०५१) दशमूलाचं घृतम् (२) यो. त. । त. १०५; यो. चिं. । अ. ५)
(वं. से. । हिक्का.; च. सं. । चि. अ. २१) दशमूलीकपायेण रास्नानागरदारुभिः । दशमूलीरसे सर्पिर्दधिमण्डेन साधयेत् । पुनर्नवाभ्यां च घृतं सिद्धं वातोदरापहम् ॥ ! कृष्णासौवर्चलक्षारवयस्थाहिजरोचकैः ॥
दशमूलके क्वाथ और रास्ना, सोंठ, देवदारु, कायस्थया च तत्पानाद्धिकाश्वासो नियच्छति॥ तथा सफेद और लाल पुनर्नवाके कल्कसे पकाया दशमूलका काथ ४ सेर, घी २ सेर, दहीका हुवा घृत वातोदरको नष्ट करता है । ( दशमूलका ' पानी ४ सेर, पीपल, सञ्चल ( काला नमक ),
For Private And Personal Use Only