Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तृतीयो भागः ।
घृतप्रकरणम् ]
और बच । प्रत्येक आधा आधा पल ( २॥ -२॥ तोले) लेकर सबको पानीके साथ पत्थर पर पीस लें । द्रव पदार्थ - दशमूलका काथ १६ सेर, या गायका दूध १६ सेर ।
विधि - २ सेर घी और द्रवपदार्थ तथा कक द्रव्योंको एकत्र मिलाकर पकावें । जब द्रव पदार्थ जल जायं तो घीको छान लें।
यह घृत अग्निमांद्य, ग्रहणीविकार, विष्टम्भ, आम, दुर्बलता, तिल्ली, खांसी, श्वास, क्षय, बवासीर, भगन्दर, कफज और वातज रोग तथा कृमिजन्य रोगोंको नष्ट करता है ।
( मात्रा -- १ से २ तोले तक । दूध या गरम पानीके साथ पियें । )
(३०४५) दशमूलादिघुतम् (२)
( च. सं. । चि. अ. २८; ग. नि. । घृता.; वं. से. । वातव्या . ) द्रोणेऽम्भसः पचेद्भागान् दशमूलांश्चतुष्पलान् । rahtoकुलत्थानां भागैः प्रस्थोन्मितेः सह ॥ पादशेषेरसे पिष्टैर्जीवनीयैः सशर्करैः । तथा खर्जूरकाश्मर्यद्राक्षाबदरफल्गुभिः ॥ सक्षीरैः सर्पिषः प्रस्थं सिद्धं केवलवातनुत् । निरत्ययं प्रयोक्तव्यं पानाभ्यञ्जनवस्तिषु ॥
दशमूलकी हरेक चीज़ ४ पल ( २० तोले ) तथा जौ, कुलथी और बेर १-१ प्रस्थ ( ८० तोले ) लेकर सबको अधकुटा करके ? द्रोण ( ३२ सेर ) पानी में पकावें । जब चौथा भाग ( ८ सेर) पानी बाकी रह जाय तो काथको
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छान लें। फिर यह क्राथ, २ सेर घी, २ सेर दूध और जीवनीय गण, खांड, खजूर, खम्भारोके फल, दाख (मुनक्का ), बेर, और कमर के फलों का समान भाग मिश्रित २० तोले कल्क लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें और पानी जल जाने पर घृतको छान लें |
इसे पिलाने या अभ्यंग अथवा वस्ति द्वारा प्रयुक्त करने से वातव्याधि नष्ट होती है ।
नोट-यह वृत एकदोषज (केवल वातज ) व्याधि में हितकर है।
(३०४६) दशमूलादिघृतम् (३) (च. सं. । चि. स्था. अ. २२.; ग. नि. । घृता.; र. र.; च. द. वृ. मा., .वं. से. । कासा.; ध. । राजय )
दशमूलाढके प्रस्थं घृतस्याक्षसमैः पचेत् । पुष्कराराठी बिल्युरन्यषङ्गिभिः ॥ पे पेयानुपानं तत् वातकफात् । श्वासरोगेषु सर्वेषु नाड च ॥ काथ— दशमूह २ र पानी ३२ सेर । शेप ८ सेर ।
कल्क-पोखरमूल, राठी ( कचूर), बेलछाल, तुलसी, सांठ, मिर्च, पीपल, और होरा । प्रत्येक ११ तोला लेकर पानी के साथ पीसलें ।
विधि-२ सेर बीमें उपरोक्त हाथ और कल्क मिलाकर कापावें ।
यह घोantar समी और वासको नष्ट करता है
अनुशन - ऐया (पात्रा - १२ लोला तक 1 )
१ जीवन १९८२ ।
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