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_ [१९] ग्रंथके इस उल्लेखसे जैनधर्म म० बुद्ध और उनके बौद्धधर्मसे बहुत पहलेका प्रमाणित होता है। फिर बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति सर्वज्ञ आप्तके उदाहरणमें ऋषभ और महावीर वईमानका उल्लेख करते हैं। (न्यायबिन्दु अ० ३) इसमें जैनियोंके २४ तीर्थंकरों से आदि अन्तके जैन तीर्थंकरोंका उल्लेख करके व्याख्याकी सार्थकता स्वीकार की गई है । इसी तरह बौद्धाचार्य आर्यदेव भी जैनधर्मके आदि प्रचारक श्री ऋषभदेवको ही बतलाते हैं।' बौद्धोंके प्राचीन ग्रन्थ 'धम्मपदम्' में भी अस्पष्ट रीतिसे श्रीऋषभदेव और महावीरजीका उल्लेख आया है । एक विद्वान् उसके निम्न गाथाका सम्बन्ध जैनधर्मसे . प्रगट करते हैं और कहते हैं कि इसमेंके 'उसभं' और 'वीर' शब्द खासकर जैन तीर्थकरों के नाम अपेक्षा लिखे गए हैं -
"उसभं पवरं वीरं महेसिं विजिताविनं । अनेजं नहातकं बुद्धं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ॥ ४२२ ॥"
-धम्मपदम् । इसप्रकार बौद्ध साहित्यसे भी यही प्रकट है कि इस जमाने में जैनधर्मका प्रचार भगवान ऋषभदेव द्वारा हुआ था; जिनके समयका पता लगाना इतिहासके लिए इससमय एक दुष्कर कार्य है।
१-सत् शास्त्र "वीर" वर्ष ४ पृ० ३५३ ।।
२-इन्डियन हिस्टारीकल क्वार्टी भाग ३ पृ. ४७३-४७५ 'अगेस्ता डिक्शनरौं में 'ऋषभ' शब्दकी उत्पत्ति अवेस्तन (Avestan) शब्द 'अरशम' ( =नर )से लिखी है, जिसके अर्थ पुरुष, बैल, बहादुर आदि होते हैं। इसी तरह 'वीर' के अर्थ भी बहादुर लिखे हैं। सारांश मि० गोविन्द पैने उक्त पत्रिकामें इन दोनों शब्दोंको यहु प्राचीन सिद्ध किता है। अवेस्तन भाषामें अर्हत् शब्द भी मिलता है ।