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बनेकान्त
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छोटा-सा संकलन उन्होंने प्रकाशित किया। बाद में तो खण्डगिरि उदयगिरि के उद्धारक छोटी छोटी पुस्तिकामों, स्फुट लेखो और शोष-निबन्धों
पुरातत्व सम्बन्धी जो अनेकों कार्य, अनेकों स्थानों के द्वारा अपने अनुभव का निचोड़ उन्होंने समय समय पर पर उन्होंने किये हैं, वे यदि न भी कर पाते तो केवल समाज में वितरित किया। खण्डगिरि पर उनकी लेख
खण्डगिरि उदयगिरि के प्रति किया गया उनका अकूत माला, बंगीय जैन पुरावृत्त, नोभाखाली का यात्रा वृतांत
परिश्रम बाबू छोटेलाल जी की स्मृति दीर्घकाल तक हमारे जमिन गुफा-मन्दिर प्रादि अनेक निबन्धों में बहुत मन में बनाये रखने के लिए पर्याप्त था। यदि यह कहा उपयोगी सामग्री का संकलन हुमा है।
जाय कि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की इन जैन गुफामो उनका यह लेखनकार्य भी सदा बिलकूल निस्पृह भौर को भारतीय पुरातत्व के नक्शे पर लाने का श्रेय उन्ही निरपेक्ष रहा है। स्फुट लेखों प्रादि के पारिश्रमिक स्वरूप को है तो भी यह कोई प्रत्युक्ति न होगी। अनेक पत्रोने उन्हें समय समय पर जो बैंक चैक भेजे उन्हें
उन्होने खण्डगिरि उदयगिरि का दर्शन मर्व प्रथम बाबूजी ने सदा संग्रह किया, कभी भुनाया नही। उनके
. १९१२ मे सेठ पदमराज जी रानी वालो के साथ किया । कागजों में ऐसे अनेक पुराने चैक मैंने देखे हैं।
उम समय तक यह स्थान बिलकुल अप्रकट तथा प्रज्ञात - देश-विदेश के लेखका, विचारको मार सन्तान जन- था। सम्राट् खारवेल द्वारा निर्मित इन अनमोल जैन धर्म के विषय में कब, कहाँ, क्या कहा या लिखा है, गूफानों को अनेक प्रज्ञातनामा देवी देवताओं का प्रावास इसका महत्वपूर्ण संकलन करके 'जैन बिबलियोग्राफी' नाम बताकर जबरदस्त पण्डो-पूजारियों ने इन गुफामी पर
४५ में उन्होने प्रकाशित किया था। यह नि सन्देह अधिकार कर रखा था। इतना ही नही, वीतराग के इन ही उनके जीवन की एक बड़ी उपलब्धि थी। इस प्रन्थ मन्दिगे को नाना प्रकार के प्रनाचारो और अनैतिक व्याका दूसरा अप-टु-डेट सस्करण तैयार करने मे उन्होने ।
पारो का अड्डा बना रखा था। बाबू जी ने तत्कालीन जीवन के अन्तिम दस वर्षों मे अथक परिश्रम किया। इस ।
पुरातत्व-विशारदों, विशेषकर श्री टी० एन० रामचन्द्रन का अनमोल ग्रन्थ की पाण्डुलिपि प्रकाशन के लिये तैयार है।
सहयोग प्राप्त कर खण्डगिरि का महत्वपूर्ण शिलालेख यथा शीघ्र यह ग्रन्थ पाठकों के हाथ मे पहुँच जावेगा
पढ़वाया और इस स्थान की निविवाद तथा प्रामाणिक ऐसी प्राशा की जा सकती है।
ऐतिहामिकता प्रकाशित को । श्री गमचन्द्रन की ही महादिगम्बर जैन वाङ्मय के अनुपम और अनमोल
यता और प० श्रीलाल जी की सतर्कता से इन गुफाओं सिद्धान्त ग्रन्थों, धवला और जय-धवला की मूल प्रतियों
पर जैन समाज का पूजाधिकार तथा पुरातत्व विभाग का के छायाचित्र तयार कराकर संग्रहालयो मे रवाने की
अधिकार स्थापित हो सका। श्री रामचन्द्रन के ही सहउनकी उत्कट अभिलाषा थी जो अनेक कारणों से पूरी
योग से इस स्थान की एक परिचय पुस्तिका (Guide नहीं होने पा रही थी। देवात् जब इस कार्य का सुयोग
Book) भी बाबू जी ने तैयार की और उसे अपने 'वीर लगा तब वे अस्वस्थ थे और इतना श्रम करने के योग्य
शासन संघ' में प्रकाशित किया। नही थे। परन्तु अपनी लगन के कारण, स्वास्थ्य की चिन्ता न करते हुए उन्होने अवसर का उपयोग करना बाद मे तो जैसे जैसे इस स्थान का महत्व लोगो की स्थिर किया । तत्काल दिल्ली जाकर पावश्यक उपकरणों समझ मे प्राता गया वैसे ही वैसे उसकी प्रसिद्धि बढ़ती और सहयोगियों की व्यवस्था करके वे सुदूर दक्षिण की गई; पर उसके प्रचार और सुरक्षा में बाबू जी का महत्व"सिद्धान्त-सति का' पहुँच गए। अपने सामने लगभग पूर्ण सहयोग सदा बना रहा। सन् १९२० मे बगाल, साढ़े छ: हजार पृष्ठों के ताडपत्रीय साहित्य के छाया विहार, उडीसा के तत्कालीन गवर्नर लार्ड सिन्हा को वे चित्र उन्होंने तयार कराये । ये दुर्लभ चित्र भी बेलगछिया खण्डगिरि लाने में सफल हुए । सन् १९४७ में भारत के के उनके संकलन मे प्रदर्शन हेतु रखे गए हैं।
तत्कालीन वायसराय लार्ड माउण्ट बैटन की सपरिवार