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सच्चे सुख का रहस्य
८७ छोड़कर अकेले ही रात-दिन रहते हैं तथा प्रतिपल पूर्ण संतुष्ट रहते हुए अपनी आत्मा में रमण करते हैं । जिन्होंने मन के सम्पूर्ण विकारों और इन्द्रियों के विषयों को तोड़-मरोड़ कर फेंक दिया है अर्थात् त्याग दिया है, और अपने कर्मों का क्षय कर लिया है ऐसे संत पुनः पुनः धन्य हैं ।
तो बंधुओ, आप सच्चे सुख का रहस्य तो समझ गए होंगे, किन्तु उसे प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील भी बनेंगे तभी अपना जीवन सफल बना सकेंगे।
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