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आनन्द-प्रवचन भाग-४
में औरों का मार्ग दर्शन करते हैं। परिणाम स्वरूप वे सदा के लिये अमर हो जाते हैं तथा अज्ञानी प्राणी युग-युग तक उनका स्मरण करते हुए उनके जीवन से शिक्षा लेने का प्रयत्न करते हैं।
आपको भी उनके जीवन से शिक्षा और प्रेरणा लेनी है तथा उनके चरण चिन्हों पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करना है । तनिक खेद की बात है कि आप धन कमाने में तो उत्तरोत्तर कुशल बनते जा रहे हैं किन्तु धर्म कमाने में ढीले, पर मैं आशा करता हूं कि उस ढिलाई को आप पुनः दृढ़ता में बदलने का प्रयत्न करेंगे और ऐसा करने पर ही हमारे द्वारा पूज्य पाद श्री त्रिलोक ऋषि जी की पुण्यतिथि मनाना सार्थक हो सकेगा।
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