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कषायों को जीतो ! दुःखी रहते थे। उसे शांत करने के लिए उन्होंने बहुत प्रयत्न भी किये किन्तु सफल नहीं हो सके।
सेठ जी के चार पुत्र थे । चारों ही सुशील और योग्य थे। उनमें से तीन का विवाह हो गया था, चौथे का करना था। सेठजी ने विचार किया कि अगर मेरे घर में चौथी पुत्र-वधू ऐसी आ आय, जो कि अपनी सास के स्वभाव को शांत बना सके तो बड़ा अच्छा रहे। उन्होंने इसी दृष्टि से किसी सुलक्षणा, चतुर एवं शांतस्वभाव की कन्या खोजनी प्रारम्भ की। अंत में अपनी खोज के अनुसार उन्होंने कन्या टूढ़ी और चौथे पुत्र का विवाह कर दिया । विवाह के पश्चात् सेठजी ने छोटी पुत्र-वधू से अपने मन की बात जाहिर की तथा उससे कहा-"किसी भी प्रकार से तुम्हें अपनी सास के स्वभाव को बदलना है।" बहू ने ससुर की आज्ञा को शिरोधार्य किया तथा उन्हें इस बात का विश्वास दिलाया।
अब चारों बहुओं ने विचार-विमर्ष किया तथा अपनी सास को समझाने की दृष्टि से वे उसके पास आई । किन्तु सास के पास पहुंचने से पहले तीनों बड़ी बहुओं ने तय कर लिया था कि वे कुछ नहीं बोलेंगी छोटी बहु चतुर है अतः वह बात करेगी।
तो जब वे लोग संगठित होकर सास के पास पहुंची तो प्रथम तो चारों को एक साथ देखकर ही-सेठानी भड़क उठी । बोली- 'तुम चारों इकट्ठी होकर आई हो ? क्या जरूरत पड़ गई ? झगड़ा करना है क्या ? _____सास के स्वभाव से बहुएँ परिचित थीं और अतः शांत रहीं। केवल छोटी बह विनय पूर्वक बोली- "माताजी ! हम झगड़ा करने नहीं आई केवल आपसे एक प्रार्थना करने आई हैं ,"
"प्रार्थना ? कैसी प्रार्थना ?" सेठानी रोषपूर्वक बोली। । "यही कि अपना घर गांव में सबसे बड़ा हैं। हमारे पास धन, इज्जत परिवार सभी कुछ है । किसी चीज की कमी नहीं। किन्तु आप थोड़ा कटु बोल जाती हैं अतः लोगों से झगड़ा हो जाता है। इसी बजह से हमें भी दो . शब्द सुनने पड़ते हैं।"
"तो मैं क्या करूँ ? मेरा स्वभाव ही जो है । तुम्हें इसकी पंचायत करने की क्या जरूरत पड़ गई ?"
सेठानी को आग-बबूला देखकर भी छोटी बहू नम्रतापूर्वक बोली- "हम यह चाहती है कि आपको जो कुछ भी और जितना भी कहना-सुनना हो वह हम चारों से ही कहा करें । हम वारी-वारी से आपके पास रोज रहेंगी। इससे
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