Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 347
________________ ३३२ आनन्द-प्रवचन भाग-४ चाहिए और उसे केवल शांति, समभाव या क्षमा से ही जीता जा सकता है। जिस प्रकार रक्त रंजित वस्त्र रक्त से नहीं धूल सकता इसीप्रकार क्रोध को प्रतिकारक क्रोध, उत्तेजना, आवेश अथवा वैर से नहीं हो सकता। क्रोध के शमन का सर्वोत्तम उपाय समभाव है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि एक तरफ तो व्यक्ति करोड़ पूर्व तक नाना प्रकार की तपस्या करता है तथा दूसरी ओर एक व्यक्ति पूर्ण समभाव द्वारा किसी व्यक्ति की कड़वी बात को सहन करता है। पर अगर दोनों की तुलना की जाय तो करोड़ पूर्व तक तपश्चर्या करनेवाले की अपेक्षा समभावपूर्वक किसी का एक दुर्वचन सहन करने वाला अपने कर्मों की अधिक निर्जरा कर लेता है। अत: प्रत्येक साधक को अपने क्रोध की मात्रा का अधिक से अधिक परित्याग करने का प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि क्रोध भी चार प्रकार का होता है और जो सबसे निकृष्ट होता है वह जन्म-जन्मातर तक भी वैर का बंधन किये रहता है। संस्कृत के एक श्लोक में बताया गया है --- उत्तमस्य क्षणं कोप: मध्यमस्य घटीद्वयम् । अधमस्य त्वहोरात्रि, पापानां मरणान्तकः ।। अर्थात-उत्तम पुरुषों का क्रोध अत्यल्पकाल तक रहता है, मध्यम व्यक्तियों का दो घड़ी तक, नीच व्यक्तियों का दिन-रात तक, किन्तु जो पापात्मा हैं उनका क्रोध तो जन्मपर्यंत बना रहता है । तो बंधुओ, हमें प्रयत्न तो क्रोध कषाय के सर्वथा नाश करने का ही करना चाहिए, फिर भी अगर ऐसा न हो पाए तो उत्तम पुरुषों के समान उसे आते ही शीघ्रातिशीघ्र विदा करने की इच्छा तो रखनी ही चाहिए। जो व्यक्ति विवेकवान और चतुर होते हैं वे अपने प्रयत्न में अवश्य सफल होते हैं तथा जहाँ वे अपने क्रोध को जीतते हैं, वहाँ सामने वाले क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को भी शांत करने की शक्ति अपने आप में जागृत कर लेते हैं। प्रसंग वश ऐसा ही एक उदाहरण सामने रखता हूँ जिसमें चतुर बहू ने अपनी क्रोधी स्वभाव की सासु के क्रोध को भी अपनी बुद्धि से शांत बना लिया। क्रोध का उपचार____एक सेठ थे। बड़े ऐश्वर्यशाली एवं समाज में भी प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति थे । किन्तु दुर्भाग्य से उनकी पत्नी यानी सेठानी अत्यन्त क्रोधी स्वभाव की थी । अतः सभी तरह से सुखी होने पर भी सेठ जी अपनी पत्नी की ओर से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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