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आनन्द-प्रवचन भाग -४
नहीं है । उस समय उनका सम्पूर्ण मान और अभिमान कपूर के समान उड़
जाता है। . उर्दू भाषा के सुप्रसिद्ध शायर 'जोक' ने भी बड़े मनोरंजक शब्दों में कहा है
हम जानते थे इल्म से कुछ जानेंगे।
जाना तो यह जाना कि हमने न जाना कुछ भी । सारांश यही है कि ज्ञान होने पर ही व्यक्ति को महसूस होता है कि हम तो कुछ भी नहीं जानते। ___कहने का अभिप्राय यही है कि अज्ञानी और अधूरा ज्ञान प्राप्त करने वाले व्यक्ति गर्व से भरा हुआ रहता है। परिणाम यह होता है कि वह अपने सद्गुणों का क्रमशः नाश करता चला जाता है और अपनी आत्मा को मलीन बनाता हुआ उसे पतन की ओर ले जाता है । अपने अभिमान के कारण वह अन्य व्यक्तियों के मन को दुखाता है तथा कर्मों का बंधन करता है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को अभिमान पर विजय प्राप्त करनी चाहिये।
दशवकालिक सूत्र की गाथा में बताया है कि मान को मार्दव अर्थात् कोमलता से जीतना चाहिये । अहंकार व्यक्ति को क्रूर बनाता है और कोमलता उसे शांत करती है।
राम जब वनवास में थे तो निषादों का राना गुह उनका बड़ा भक्त हो गया । गुह राम को अपना भगवान समझकर उनकी सेवा में लगा रहता था। किन्तु वह पढ़ा लिखा नहीं था और न ही उसे शिष्टाचार की बातों का ध्यान था अतः राम को वह सदा स्नेह के आधिक्य में 'तू' कहकर ही सम्बोधित करता था। ___निषादराज का इस प्रकार बोलना लक्ष्मण को बुरा लगता था। उनमें क्रोध और बड़प्पन का गर्व था अतः गुह का 'तू' करके राम को बोलना उनसे सहन नहीं हुआ और वे गुह को एक दिन तो मारने के लिये तैयार हो गये ।
पर राम ने लक्ष्मण को कोमलता से समझाते हुए कहा-"भाई ! तुम गुह की भावनाओं पर ध्यान दो, उसके शब्दों पर नहीं । निषादराज की भक्ति और प्रेम का आदर करते हुए अपने अहं को भूल जाओ, उसे महत्व मत दो।" - माई के शिक्षाप्रद और कोमल शब्द सुनकर लक्ष्मण अपने गर्व पर लज्जित हुए और उन्होंने क्षमा मांगी।
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