Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 352
________________ कषायों को जीतो! ३३७ मान नहीं है । किन्तु वृश्चिक अर्थात् बिच्छू, जिसके पास केवल डंक में तनिक सा विष ही है, और जो कि एक चिमटे से पकड़ लिये जाने पर भी अपने आपको मुक्त नहीं कर सकता ऐसे शक्तिहीन प्राणी के अंदर भी इतना मान है कि वह सदा अपने डंक को उठाये हुए ही चलता है। इसका कारण क्या है ? यही कि बिच्छ के पास विष और शक्ति दोनों ही थोड़ी मात्रा में है अर्थात् उसमें दोनों की अपूर्णता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति ज्ञान में अपूर्णता रखता है वह भी घमंड के मारे जमीन पर पाँव नहीं रखता। आप एक श्लोक प्रायः बोलते भी हैं सम्पूर्ण कुम्भो न करोति शब्द ___ म? घटो घोषमुपैति नूनम् । अर्थात्-जो घड़ा पूरा भरा हुआ होता है वह तनिक भी आवाज नहीं करता, किन्तु आधा भरा हुआ घड़ा तेज आवाज करता रहता है। ___ यही हाल निर्धन और धनी व्यक्ति का होता है। अगर निर्धन को थोड़ा सा भी धन प्राप्त हो जाय तो वह गर्व से गर्दन को अकड़ाए हुए ही चलता है किन्तु जो धनी होता है वह फलों के भार से झुके हुए वृक्ष के समान नम्र बन जाता है। भर्तृहरि ने अपने एक श्लोक में भी अपने ही अनुभव से लिखा है यदा किंचिन्नोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवं, तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः । यदा किंचित्किचित् बुधजनसकाशादवगतं, तदा मूर्योऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः ॥ कवि का कथन है-जब मैं बहुत थोड़ा सा जानता था, तब हाथी के समान मद से अंधा हो रहा था। मैं समझता था कि मैं सर्वज्ञ हूँ। किन्तु जब मुझे बुद्धिमानों की संगति से कुछ ज्ञान हुआ, तब मैंने समझा कि मैं तो कुछ भी नहीं जानता। उस समय मेरा झूठा मद ज्वर की तरह उतर गया। __ वस्तुत: जो व्यक्ति थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, वे यह समझ बैठते हैं कि हम महाज्ञानी हैं और संसार की सारी बुद्धि हमारे ही मस्तिष्क में भरी हुई है। अपनी अल्पज्ञता के कारण वे गर्व से भर जाते हैं और अन्य किसी को 'कुछ नहीं समझते । किन्तु जब वे कभी अपने से अनेक गुने अधिक बुद्धिमान और ज्ञानवान पुरुषों की संगति में पहुंच जाते हैं तो उनकी आँखें खुलती हैं और उन्हें भान होता है कि उनके पास तो सिंधु में बिन्दु जितना भी ज्ञान २२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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