Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 349
________________ ३३४ आनन्द-प्रवचन भाग-४ यह होगा कि गांव में कोई आपकी निन्दा नहीं करेगा और सब आपके ही गुण-गान करेंगे।" गाँव में निन्दा की बात सेठानी की समझ में कुछ आई और वह मुंह से कुछ नहीं बोली, केवल कुप्पे के समान मुंह फुलाए बैठी रही। छोटी बहू ने सास की चुप्पी को स्वीकृति समझ लिया और अपनी जिठानियों को इशारे से बुलाकर अन्दर चली गई। __उस दिन की बातचीत का परिणाम यह हुआ कि सेठानीजी ने बाहर के व्यक्तियों से लड़ना छोड़ दिया और चूंकि एक न एक बहू अपनी-अपनी बारी से उनके सामने रहती थी अतः उनसे ही झगड़ना और जली-कटी सुनाना चालू रखा। छोटी बहू ने भी अपनी जिठानियों से अत्यन्त प्रेम और नम्रतापूर्वक कह दिया--"मैं छोटी हूं और मुझे आप लोगों को शिक्षा देना शोभा नहीं देता पर हमारे घर में शांति स्थापित करने के लिये आपसे विनय है कि अपनी सासुजी कुछ भी कहें, एक भी बात का कड़वा उत्तर हमें नहीं देना है।" ____ सभी बहुएं सुयोग्य थीं अतः उन्हें इस बात में क्या एतराज होता? उन्होंने भी निश्चय कर लिया कि कुछ भी क्यों न सुनना पड़े कुछ दिन हम सभी-कुछ सहन करेंगी। और इस निश्चय के साथ प्रतिदिन एक बहु सास के पास अधिक रहने लगी और उनकी कटु और कड़वी बातों को शांति से सहने लगी। इस प्रकार दो महीने व्यतीत हो गए तथा सेठानीजी का बाहर के व्यक्तियों से झगड़ना तो बन्द हो गया पर घर में रोज किसी न किसी बहु की शामत आती और उसे कटूक्तियां सुननी पड़ती । अतः छोटी बहु ने विचार किया कि किसी प्रकार अब सासुजी का घर में झगड़ना भी मिटाना चाहिए। ___ इस विचार के साथ जब उसकी सास के समीप रहने की बारी आई तो उस दिन वह सुबह-सुबह ही दही और बासी रोटी खाने बैठ गई। यह देखते ही सेठानी अत्यन्त क्रोधित होकर बोली-"कैसे भूखे घराने की लड़की आई है । दिन निकला नहीं कि खाना शुरू कर दिया। क्या दिन में खाने को नहीं मिलता ?" छोटी बहु एक शब्द भी नहीं बोली। केवल सेठानी ही जो मन में आया कहती रही । पर आखिर अकेली वह कब तक बोलती ? थक गई तो चुप हो गई। वास्तव में ही सुनने वाला व्यक्ति अगर क्षमावान हो तो क्रोधी अकेला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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