Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 343
________________ ३२८ आनन्द प्रवचन भाग-४ उतना ज्ञान प्राप्त करके भी उसका समुचित लाभ उठाने का प्रयत्न करना चाहिये। ध्यान में रखने की बात है कि मनुष्य बहुत अधिक पढ़ लिखकर भी अगर उसे जीवन में न उतारे तो अपने ज्ञान का किंचित् भी लाभ नहीं उठा सकता। और इसके विपरीत थोड़ा सा ज्ञान प्राप्त करके भी, या गुरु के दो शब्द सुनकर उन्हें दृढ़तापूर्वक ग्रहण कर ले तो अपनी आत्मा का उत्थान कर सकता है। ___ कहने का अभिप्राय यही है कि मुमुक्षु प्राणी को क्रोध, मान, माया, तथा लोभ, इन चारों कषायों का त्याग करके अपने चारित्र को निर्मल बनाना चाहिए । चारित्र को शुद्ध बनाने में संस्कारों का बड़ा भारी हाथ होता है, यह प्रारम्भ में मैंने आपको बताया ही है। इसलिये उसे सदा सन्त-पुरुषों का समागम करके उत्तम संस्कार अपनाने चाहिए और उत्तम गुणों को ग्रहण करने का प्रयत्न करना चाहिए । ____जीवन को श्रेष्ठ बनाने में संस्कार सबसे मुख्य वस्तु होती है। संस्कारों की उत्कृष्टता एक दिन जीव को अरिहंत बना सकती है। मारवाड़ी भाषा में एक बड़ा सुन्दर दोहा कहा गया है सिद्धां जैसो जीव है, जीव सोई सिद्ध होय । कर्म-मैल को आन्तरो, बूझे बिरला कोय । अर्थात्-प्रत्येक जीव सिद्ध के जैसा ही है क्योंकि जीव ही सिद्धत्व को प्राप्त करता है । जीव और सिद्ध में अन्तर केवल कर्मों का है। जब तक आत्मा पर पाप कर्मों की मलीनता बनी रहती है वह परमात्मापद की प्राप्ति नहीं कर पाती और जिस दिन वह मलिनता हट जाती है आत्मा सिद्ध, बुद्ध, अरिहंत कहलाने लगती है। - आज का युग भौतिकता का युग है । भौतिक जीवन की चमक-दमक और प्रलोभन के कारण मनुष्य अपनी आत्मा के महत्त्व को भूलता जा रहा है । वह अपने बाह्य जीवन को सुखी बनाने का प्रयत्न करता है। अपने शरीर को स्वस्थ और सबल बनाने की कोशिश करता है, अपनी ख्याति और सम्मान बढ़ाने के लिए अपने ज्ञान का और तर्कों का अंधाधुंध प्रयोग करके लोगों पर अपना सिक्का जमाने के प्रयास में रहता है। पर यह सब क्या साबित करता है ? यही कि जैसे एक मन्दिर को सजाया जाय, उसकी दीवारों पर अद्वितीय कारीगरी और नक्काशी की जाय, उस पर सोने का कलश चढ़ाया जाय और झंडियों तथा पताकाओं को लहराकर उसके प्रभाव को बढ़ाने का प्रयत्न किया जाय, किन्तु उस मन्दिर के अन्दर भगवान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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