Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 338
________________ जीवन श्रेष्ठ कैसे बने ? ३२३ चाहिए। मेरे मन में मटकों में छेद कर-करके खेल करने की इच्छा हुई अतः मैं उनमें कंकर मारने लगा। पर यह कोई अच्छी बात तो थी नहीं मेरी गलती तो थी ही अतः मैं मिच्छामि दुक्कड़ कहकर उसके लिये प्रायश्चित भी लेता गया। गुरु जी शिष्य की बात सुनकर मुस्कुराए पर फिर उसे समझाया"वत्स ! अनजान में गलती हो जाय उसके लिये प्रायश्चित करने पर वह फल देता है । किन्तु जान-बूझकर गलतियाँ करते हुए प्रायश्चित करने का कोई मूल्य नहीं होता।" - गुरु जी की बात शिष्य की समझ में आगई और उसी दिन से उसने निरर्थक कार्य करना अथवा जानबूझ कर गलतियां करना छोड़ दिया। .. तो बंधुओ. वह शिष्य अभिमानी नहीं था अतः उसमें विनय जागरूक था और इसीलिए उसने अविलम्ब अपनो भूल को स्वीकार कर लिया किन्तु जो व्यक्ति अभिमानी होते हैं वे अपनी हानि होने पर भी बात को नहीं छोड़ते । हम प्रायः देखते हैं कि अनेक बार भाइ-भाई में या परिचितों में भी किसी चीज़ या बात पर खटक हो जाती है तो महीनों वे अदालतों के चक्कर काट लेते हैं, जितने का नुकसान हुआ होता है या एक दूसरे का छीना हुआ होता है उससे अनेक गुना अधिक पैसा वे वकीलों और कोर्टों में बिगाड़ देते हैं, किन्तु अपने मान को त्यागकर सुलह नहीं करते। हानि होने की अपेक्षा उन्हें मान भंग होना अधिक बुरा लगता है। रावण ने सीता का हरण किया था। पर उसके यह नियम थे कि मैं किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं अपनाउँगा। सीता को अपने अनुकूल बनाने के लिये भी उसने अनेक प्रयत्न किये किन्तु सफल नहीं हुआ और भविष्य में सफलता प्राप्त होने की आशा भी नहीं थी। ऐसी स्थिति में उसकी सती-साध्वी पत्नी मंदोदरी और अनुज विभीषण ने बहुत समझाया कि–'अब सीता आपके अनुकूल होगी ऐसी आशा नहीं है तो व्यर्थ ही झगड़ा बढ़ाने से क्या लाभ है ? सीता को पुनः राम के पास पहुंचा दीजिये।' किन्तु केवल अभिमान के कारण रावण ने ऐसा नहीं किया तथा कड़क कर उत्तर दिया-"ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या मैं अपने हाथों ही अपनी नाक कटवाऊंगा।" और अन्त में क्या हुआ ? यह आप सब जानते ही हैं कि रावण की गलती का प्रायश्चित केवल रावण को ही नहीं उसके पूरे परिवार, प्रजा एवं सम्पूर्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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