Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 339
________________ ३२४ आनन्द प्रवचन भाग-४ लंका को भोगना पड़ा। भोगना पड़ेगा, यह रावण भी जान गया था किन्तु मारे अहंकार के अन्त तक भी उसने सीता को लौटाया नहीं। यह है मान अथवा अहंकार का नमूना जो बताता है कि सर्वस्व नष्ट हो जाने पर भी मानी कभी झुकता नहीं, क्योंकि मान के आते ही विनय गुण का तो लोप हो ही जाता है । मान के पश्चात् तीसरा कषाय है कपट अथवा माया। श्लोक में कहा गया है- "माया मित्ताणि नासेइ" यानी माया मित्रता का नाश करती है। इसके विषय में सर्वप्रथम यह जानने की आवश्यकता है कि माया अपना कार्य बड़ी सूक्ष्मता से और छिपे तौर पर करती है। क्रोध तो कहा जाता है कि मनुष्य के कपाल में निवास करता है और उसका आक्रमण होते ही वह आँखों में झलकने लगता है। तत्पश्चात् जबान पर आकर अपना रूप प्रकट कर देता है । इसी प्रकार अहंकार भी पहले तो गर्दन को अकड़ा देता है और फिर वाणी में उतर आता है। किन्तु माया अथवा कपट का कोई चिह्न बाहर दिखाई नहीं देता। वह व्यक्ति के पेट में घुसा रहकर ही अपना काम करता रहता है। __ एक संस्कृत के कवि ने कपटी अथवा धूर्त पुरुष के लक्षण इस प्रकार बताये हैं "मुखं पद्मदलाकारं, वाचा चन्दनशीतला। हृदयं कर्तरीतुल्यं, धूर्तस्य त्रय लक्षणम् ॥" मुंह कमल के समान खिला हुआ, वचन में चन्दन के समान शीतलता पर हृदय कैंची की तरह कुटिल, ये तीन लक्षण धूर्त व्यक्तियों के होते हैं । वस्तुतः क्रोध और मान तो बाह्य व्यवहार के द्वारा पहचान लिये जाते हैं, किन्तु माया छिपी रहती है अतः उसका बार अचानक और अधिक घातक होता है। कपटी मित्र का कुचक्र ___ एक सेठ के दो पुत्र थे। वह मरने लगा तो उसने अपने दोनों पुत्रों को बुलाकर अन्तिम आदेश दिया-"पुत्रो ! मेरी यह अन्तिम इच्छा है कि तुम दोनों मेरे मरने के बाद सम्पूर्ण जायदाद का बटवारा प्रेम से कर लेना । झगड़ा मत करना। पुत्रों ने पिता की बात मान ली और उनके देहान्त के कुछ दिन बाद वे दोनों अलग-अलग हो गए । बँटवारा करते समय सारी सम्पत्ति तो ठीक से बँट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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