Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 340
________________ जीवन श्रेष्ठ कैसे बने ? ३२५ गई पर एक कटोरी बची रह गई । बड़े भाई ने वह कटोरी छोटे भाई को दे दी । अब दोनों अपना-अपना कारोबार देखने लगे । सौभाग्यवश छोटे भाई का कारोबार बहुत अच्छा चल निकला और उसके पास बड़े भाई की अपेक्ष अधिक धन हो गया । उसी गाँव में सेठ जी का एक कपटी मित्र रहता था, जो सदा सेठ की सम्पत्ति देखकर जला करता था और किसी न किसी उपाय से उनके धन का विनाश करने की इच्छा रखता था । सेठ जी के जीवित रहते तो उसकी दाल गली नहीं किन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् उसने अपनी योजना पूरी करने की स्कीम बनाई । वह कपटी मित्र सेठ जी से बड़ा स्नेह-पूर्ण सम्बन्ध रखता था, यह उनके दोनों पुत्रों को मालूम था अतः पिता के मरने के पश्चात् भी वे उसका आदर और सम्मान करते रहे तथा समय-समय पर अपने पिता के मित्र को बुजुर्ग मानकर उनसे सलाह-मशविरा लेते रहे । सेठ जी के मित्र को बँटवारे में बची हुई कटोरी का पता था और यह भी पता था कि वह कटोरी छोटे को दी गई है । इधर छोटे भाई का कामकाज भी बहुत अच्छा चल रहा था । ठीक इसी सयय सेठ के उस मित्र के हृदय में कपट ने काम करना प्रारम्भ कर दिया और उसके परिणामस्वरूप उसने बड़े भाई से जाकर कहा - "बेटा ! मुझे कहना तो नहीं चाहिए किन्तु तुम्हारे हित के लिए कहता हूँ कि तुमने जो कटोरी अपने छोटे भाई को बँटवारे के समय दी थी वह 'देवनामी' कटोरी थी और जिसके पास वह रहेगी, उसकी ऋद्धि सदा दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ेगी । अतः अपना भला चाहो तो कटोरी तुम वापिस ले लो । इसी प्रकार वह छोटे भाई के पास गया और उससे बोला – “तुम्हारा बड़ा भाई तुम्हारे बढ़ते हुए धन को देखकर जलने लग गया है और कटोरी के बहाने तुमसे झगड़ा करना चाहता है ।" इस प्रकार उस मायावी मित्र ने दोनों में झगड़ा करवा दिया और एक कटोरी को लेकर दोनों भाइयों ने सम्पत्ति के लिए कचहरी - कोर्ट तक पहुँच कर अपना सब धन बरबाद कर दिया । यह दुखद परिणाम केवल एक कपटी के कपट के कारण निकला था । मायावी आत्माएँ इसी प्रकार छिपे -छिपे लोगों का अनिष्ट करने की ताक में रहती हैं । पर वे भूल जाती हैं कि वर्तमान में तो छिपे तौर पर हम औरों का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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