Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

Previous | Next

Page 334
________________ २७ जीवन श्रेष्ठ कैसे बने ? धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओं एवं बहनो ! आज के प्रवचन में श्री रतनमुनि जी ने संस्कारों के महत्व पर प्रकाश डाला है। उत्तम संस्कार जीवन को उत्तम और श्रेष्ठ बनाते हैं । जिस व्यक्ति के जीवन में संस्कार अच्छे नहीं होते, उसका जीवन अपूर्ण एवं निष्फल बन जाता है। • संस्कार व्यक्ति की शैशवावस्था में मूल जमाते हैं। जिस प्रकार कुम्हार गीले घड़े पर नक्काशी करता है तो वह कभी नहीं मिटती और उस समय वह चाहे जैसी कारीगरी कर भी लेता है । उसी प्रकार शिशु के कोमल और सरल हृदय में चाहे जैसे संस्कार डाले जा सकते हैं और उस समय जो संस्कार जम जाते हैं वे जीवन पर्यन्त बने रहते हैं। हम आज जो कुछ करते हैं उसमें अधिकांश भाग हमारे हृदय में जमे हुए संस्कारों का परिणाम होता है। संस्कारों के द्वारा ही मनुष्य के चरित्र का निर्माण होता है । अगर संस्कार अच्छे होते हैं तो मनुष्य सच्चरित्र कहलाता है और संस्कार बुरे हुए तो वह दुश्चरित्र माना जाता है । इसके अलावा सुसंस्कृत व्यक्ति की संगति करने से भी मनुष्य के मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, वह सत्कर्म-प्रिय बन जाता है और कुसंगति में पड़ गया तो कुकर्मों की ओर प्रेरित होता है। __ कहने का अभिप्राय यही है कि प्रत्येक व्यक्ति को सुसंस्कारों से युक्त बनने का प्रयत्न करना चाहिये । अगर संघ का प्रत्येक व्यक्ति यह निश्चय करले कि मुझे अपने जीवन को सदाचरण से सुशोभित करना है तथा समाज व संघ के प्रति अपने कर्तव्य का पूर्ण रूप से पालन करना है तो संघ स्वयं ही महान् और श्रेष्ठ बन जाता है। इसलिये संघ के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने परिवार, समाज एवं संघ के हित को ध्यान में रखते हुए आपसी स्नेह एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360