Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 324
________________ कर्म लुटेरे ! ३० और मेरी मनोकामना पूरी हुई है। वही दिन धन्य होगा, जिस दिन इन क्रूर कर्मों से मेरा पिंड छूट जाएगा । बन्धुओ ! आशा है आपने कविता के भाव समझ लिये होंगे । कविता में जो कुछ कहा है वह केवल एक ही जीवात्मा के लिए नहीं है । इस संसार में प्रत्येक प्राणी की यही दशा है, हर व्यक्ति अपने पूर्व-कृत कर्मों का परिणाम भोग रहा है । अनन्तकाल से परिभ्रमण करती हुई उसकी आत्मा नाना योनियों में नाना प्रकार के कष्ट सहती रही है । किन्तु अब कुछ शुभ कर्मों के उदय से उसे मानव - पर्याय मिल सकी है। मानव जन्म एक ऐसा दुर्लभ अवसर है जो महामुश्किलों के पश्चात् प्राप्त हो सका है । पर इस जीवन में अगर वह चाहे तो अपने समस्त कर्मों के जाल को छिन्न-भिन्न कर सकता है अपनी आत्मा को पूर्णतया विशुद्ध बनाकर परमात्मा बना सकता है । किन्तु यह कार्य सहज और सरल नहीं है । इसके लिए बड़े पुरुषार्थ और त्याग-तपस्या की आवश्यकता है । व्यक्ति अगर यह सोचे कि मैं संसार के सुखों को भी भोगता चलू और आत्मा का कल्याण भी कर लू तो यह छत्तीस IT आंकड़ा होगा जो कभी भी एक दूसरे से मेल नहीं खायेगा । अभी मैंने आप से कहा था कि दो विरोधी कार्य एक साथ नहीं हो सकते । जिस प्रकार कोई व्यक्ति दो दिशाओं में एक साथ नहीं चल सकता, इसी प्रकार प्रवृत्ति मार्ग और निर्वृत्ति मार्ग पर भी साथ-साथ नहीं चला जा सकता । एक मार्ग भोग का है और दूसरा त्याग का । भोगी त्यागी नहीं बन सकता और त्यागी भोगी बना नहीं रह सकता । इसलिये अगर हम पापों से छुटकारा चाहते हैं और परमात्मदशा की प्राप्ति की अभिलाषा रखते हैं तो हमें विषय-विकारों के लुटेरों से आत्म-धन की रक्षा करते हुए संयमपूर्वक साधना-पथ पर बढना होगा तथा धर्म की सहायता से आत्मा को अपने शुद्ध रूप में लाने का प्रयत्न करना होगा । तभी हमारा मनुष्य जन्म सार्थक होगा तथा हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेंगे । आवश्यकता है हमें अपने अन्दर पूर्ण विश्वास और उत्साह भर लेने की । अपनी आज की दशा को देखकर किसी को निराश नहीं होना चाहिए । प्रत्येक वह आत्मा जो संसार - मुक्त हुई है सदा ही वैसी नहीं थी। सभी की दशा आप और हमारे जैसी रही है । किन्तु उन्होंने प्रयत्न कियां, त्याग और तपस्या की और तब कर्मों को नष्ट किया । हम भी चाहें तो सर्वथा कर्म-रहित हो सकते हैं पर चाहिये आत्म-विश्वास । अगर हम आत्मा की तेजस्विता में, उसकी अनंत शक्ति में विश्वास रखें तो फिर कौनसा कार्य हमारे लिये कठिन रह जाय ? कोई भी नहीं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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