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ज्यों
तुलसी ऊधंवर के भये, बँधूर के पान
धर्म प्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
आप और हम सभी जानते हैं कि मानव-जीवन जीव को बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है । इस संसार में असंख्य जीव ऐसे दिखाई देते हैं जिनके केवल शरीर है । नाक, कान या आँखें कुछ भी नहीं हैं । आप कहेंगे, ऐसे कौन से जीव हैं जिनके वे सब नहीं हैं ? वे हैं - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति । इन पाँच स्थावरों के सिर्फ शरीर है । बाकी इन्द्रियाँ नही हैं। अतः ये एकेन्द्रिय कहलाते हैं ।
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एकेन्द्रिय से दो इन्द्रिय में जाने के लिये जीव को दुगुनी पुण्यवानी चाहिये । जैसे, एक रुपये पर एक रुपये का नफा होना । पर ऐसा कहाँ होता है ? आप लोग व्यापारी हैं और जानते हैं कि रुपये पर दो पैसा, चार पैसा नफा भी मुश्किल से मिलता है । इसी प्रकार पुण्यों का संचय भी बड़ी कठिनाई से होता है पर जब होता है तभी जीव एकेन्द्रिय शरीर छोड़कर दो इन्द्रियवाली देह प्राप्त करता है । दो इन्द्रियाँ प्राप्त होने पर शरीर के साथ वाणी भी मिली। पर उस शरीर से क्या बनता है जिसके नाक - आँख कुछ भी नहीं हो ।
तो शरीर और जीभ इन दो इन्द्रियों के बाद तीन इन्द्रियों वाला शरीर मिल सकता है, पर अनन्त पुण्यवानी प्राप्त होने के पश्चात् । जब वह हुई तो नाक बढ़ गई यानी तीन इन्द्रियाँ मिलीं ।
उसके बाद और भी अनन्त पुण्य बढ़ा तो आँखें मिलीं तथा उसके पश्चात् फिर अनन्त पुण्योपार्जन किया तो कान भी शरीर को हासिल हुए । किन्तु
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