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शास्त्रं सर्वत्रगं चक्षुः
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हैं । साथ ही शास्त्र का अध्ययन, चिंतन और मनन करते हुए अपनी आत्मा को शुद्ध एवं सुन्दर विचारों से परिपूर्ण बनाते हैं । इसीलिये श्लोक में कहा गया है - काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।'
यह तो बुद्धिमानों के समय व्यतीत करने की बात हुई । पर मूर्खों का समय कैसे बीतता है यह भी श्लोक में आगे बताया है--'व्यसनेन तु मूर्खाणाम् निद्रया कलहेन वा ।'
किया जाय ?
अर्थात् मूर्ख व्यक्तियों का समय जुआ खेलने, शराब पीने, या अन्य ऐसे ही व्यसनों में गुजरता है । किन्तु सारा समय जब उसमें भी नही बीतता तो वे अपने परिवार के सदस्यों से, पड़ोसियों से अथवा मित्रों से किसी न किसी बहाने उलझ पड़ते हैं और व्यर्थ के झगड़े खड़े कर लेते हैं । पर झगड़े भी सारे दिन नहीं किये जाते और समय बचता हैं तो फिर क्या जैसा कि श्लोक में बताया गया है, आराम से सो जाते हैं बस इसी प्रकार व्यसन में, कलह में अथवा निद्रा लेने में धीरे-धीरे उनका अनमोल जीवन समाप्त हो जाता है और वे जैसे इस संसार में आते हैं उसी प्रकार खाली हाथ चल देते हैं । वे परलोक के लिये कुछ भी नहीं कर पाते, उलटे पाप कर्मों का बंधन कर लेते हैं जो भविष्य में उन्हें अनेक जन्मों तक कष्ट पहुंचाने का कारण बनते हैं ।
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इसीलिये बंधुओं, हमें चेत जाना चाहिये तथा मूर्खों के समान व्यसन, कलह और निद्रा में ही अपना अमूल्य समय गवाकर काव्य और शास्त्र के पठन-पाठन में लगाना चाहिये । ऐसा करने पर ही हमें हेय, ज्ञ ेय और उपादेय का ज्ञान हो सकेगा । अर्थात् जीवन के लिये क्या-क्या हेय होने के कारण छोड़ने योग्य है, क्या जानने योग्य है और क्या उपयोग में लाने योग्य है इसका पता चल सकेगा । जब तक व्यक्ति को इन बातों का पता नहीं चलेगा, जब तक वह आत्मोन्नति के सही मार्ग पर नहीं चल सकेगा तथा उसे मानवजीवन का लाभ नहीं मिलेगा । अतः प्रत्येक मुमुक्षु व्यक्ति को शाश्वत सुख पाने के लिये शास्त्रों का अध्ययन करना और उनमें दिये गए आदेशों का पालन करना आवश्यक है । ऐसा करने पर ही वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेगा ।
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