Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 300
________________ २८५ सच्चा पंथ कौन सा ? कर्ण सूर्य के वरदानित पुत्र थे। अतः उन्हें जन्म के साथ ही देवी कवच एवं कुंडल प्राप्त हुए थे। वे स्वयं महान् वीर थे और अपने कवच-कुडलों से अपराजेय बन गए थे। अतः जब महाभारत के इतिहास प्रसिद्ध युद्ध में जब वे हराये नहीं जा सके तो अर्जुन ने देवराज इन्द्र की शरण ली और उन्होंने ब्राह्मण के वेश में आकर कर्ण से उनके अद्भुत कवच और कुडलों को दान के रूप में मांग लिया। कर्ण याचक को निराश नहीं लौटाते थे, उन्होंने उसी क्षण शरीर से चमड़ी के समान जुड़ी हुई दोनों वस्तुओं को खींचकर ब्राह्मण के वेश में आए हुए इन्द्र को प्रदान कर दीं। शरीर लहूलुहान हो गया किन्तु उन्होंने परवाह नहीं की। उनके दान की एक और दिल दहला देने वाली घटना है - जब वे मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए थे, उनके दान की परीक्षा लेने के लिए पुनः याचक आ उपस्थित हुए और उनसे एक माशा सोना दान में मांगा। कर्ण बोले- "भाई ! इस समय तो मेरे पास अब कुछ भी नहीं है तुम्हें किस प्रकार दूं ?" "आपके दांतों में सोना जो लगा हुआ है ।" याचक ने सुझाव दिया। "ओह ! मुझे इस बात का खयाल ही नहीं रहा। तुमने बड़ा उपकार किया है कि मेरे व्रत को भंग होने से बचा लिया। कृपा करके मेरे दांतों से सोना निकाल लो, मैं स्वयं नहीं दे सकता क्योंकि मेरे हाथ इस योग्य नहीं हैं।' कर्ण ने बड़े विनीत स्वर से आग्रह किया। ‘पर तुम्हारे दांतों से सोना मैं निकाल तो यह मेरे परिश्रम से उपार्जित धन हो जाएगा। फिर वह तुम्हारा दिया दान कैसे कहलाएगा ?" ____ “सच कहते हो भाई ! शायद मृत्यु करीब होने के कारण मेरी मति मारी गई है। तुमने जो सत्य मुझे बताया है उसके लिए जन्म-जन्मान्तर तक मैं तुम्हारा ऋणी रहूंगा। अच्छा हुआ कि मेरे वचन में कलंक नहीं लगा। अब मैं तुम्हें स्वयं एक माशा सोना प्रदान करता हूं।" ___ यह कहते हुए महाप्रयाण के पथिक महादानी कर्ण अत्यन्त कठिनाई से घिसट-घिसट कर अपने शरीर को एक पत्थर के पास ले आए और शरीर में बची-खुची शक्ति के बल पर अपने मुंह को जोर से टक्कर पत्थर पर मारी। फलस्वरूप उनके दांत टूट गए और उन्होंने इशारे से याचक को दांतों से सोना लेने के लिये कह दिया। इस प्रकार दानी कर्ण ने अंतिम क्षण तक अपने दान-व्रत का पालन किया तथा महाकवि कालिदास के कथन को अक्षरशः सत्य साबित किया कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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