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आनन्द-प्रवचन भाग-४
काव्यशास्त्रविनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्। .
व्यसनेन तु मूर्खाणाम्, निद्रया कलहेन वा। बुद्धिमान व्यक्तियों का समय काव्य एवं शास्त्र से विनोद करते हुए बड़े उत्तम तरीके से बीतता है तथा मूखों का व्यसनों में, झगड़ों में या निद्रा लेने में निरर्थक चला जाता है ।
काव्य के विषय में कहा है -- 'कवेर्भावः काव्यम् ।' कवि के जो भाव बाहर आते हैं वही 'काव्य' कहलाता है। कवि का समग्र जीवन उपकार से भरा हुआ होता है । वह गिरे हुए उत्साह को उठाता है, रोती हुई आँखों के अश्रु सुखाता है, निराश प्राणियों के समक्ष आशा का दिव्य चित्र खींचता है, सोई हुई जाति को जगाता है तथा मरे हुए देश में भी पुनर्जीवन भर देता है । इस प्रकार वह दिलों को जीतता हुआ सबका प्रिय बन जाता है। हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक प्रेमचन्द जी ने एक स्थान पर लिखा है
"कवि वह सपेरा है, जिसकी पिटारी में सर्यों के स्थान पर हृदय बन्द रहते हैं।'
कवियों की विशेषता यही है कि वे गंभीर और शिक्षाप्रद बातों को भी बड़े मनोरंजक ढंग से जगत के सामने रखते हैं। इसीलिये उनकी बात का प्रभाव लोगों पर अधिक पड़ता है । अभी अभी मैंने आपके सामने मराठी भाषा की दो लाइनें रखीं थीं
संताप हा शांत कशा प्रकारे ?
संता पहा शांत कशा प्रकारे ! देखिये, दोनों लाइनों में वे ही शब्द हैं, उनमें से कोई भी बदला नहीं गया है किन्तु कवि की चतुराई से दो दोनों का अर्थ अत्यन्त मनोरंजक तरीके से बदल गया है जिसे मैं बतला चुका हूं। वे कवि ही होते हैं जो अपने काव्य द्वारा सरस ढंग से अनेक प्रकार की शिक्षाएँ मनुष्य को प्रदान करते हैं । कवि की महत्ता बताते हुए कहा गया है
कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूः । यथातथ्यतोर्थान् व्यदधात् शाश्वतीभ्यः समाम्यः ।
-ईशावास्योपनिषद् कवि मन का स्वामी, विश्व प्रेम से भरा हुआ, आत्मनिष्ठ, यथार्थभाषी और शाश्वत काल पर दृष्टि रखने वाला होता है।
मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि संसार को विनोद ही विनोद में अनेक प्रकार की शिक्षाएं प्रदान करने वाले कवियों के काव्य द्वारा बुद्धिमान् व्यक्ति अपना समय सुन्दर ढंग से बिताते हैं। तथा उनसे कुछ न कुछ हासिल करते
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