Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 277
________________ २६२ आनन्द-प्रवचन भाग – ४ बंधुओ, अभी आपने मेरे कथन से समझा होगा कि किसी भी वस्तु, व्यवसाय या कला की जानकारी करना ज्ञान है । यह सत्य है, पर फिर भी गंभीरतापूर्वक सोचा जाय तो ज्ञान को दो भागों विभक्त किया जा सकता है । एक भौतिक और दूसरा आध्यात्मिक । भौतिकज्ञान मान लीजिये, किसी ने भूगोल पढ़ा। उसमें पृथ्वी के विस्तार की जानकारी की । कौन-सा देश कहाँ है, कहाँ सागर, कहाँ रेगिस्तान, कहाँ बंजर भूमि और कहाँ की भूमि उपजाऊ है, इसका ज्ञान हासिल किया । - किसी ने इतिहास पढ़ा। उसमें प्राचीनकाल की राज्यव्यवस्था के बारे में, प्राचीन काल के लोगों के रहन-सहन और सभ्यता के बारे में तथा उस समय राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल की। इसीप्रकार किसीने ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया। उससे सूर्य, चन्द्र नक्षत्रों की गतिविधि एवं हस्तरेखाओं को पढ़ने की विद्या हासिल की। किन्तु इन सबको पढ़ने से लाभ कितना ? उतना ही, जितनी हमारी जिन्दगी है । अर्थात् यह ज्ञान केवल हमारे इस जीवन तक ही कुछ काम आने वाला है और वह काम है जीने के लिए अर्थ उपार्जन कर लेना और संसार के व्यक्तियों पर अपनी विद्वत्ता का सिक्का जमा लेना । ऐसा क्यों ? इसलिए कि यह भौतिक ज्ञान है । इस ज्ञान का सम्बन्ध केवल इस जीवन से ही है । आमा से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है अतः आत्मा का भला करने में वह समर्थ भी नहीं है । भौतिकज्ञान में पारंगत होकर कोई व्यक्ति चाहे जितना होशियार हो जाय, कितना भी बड़ा पंडित कहलाने लगे और दुनियां भर की पोथियों को पढ़ कर तर्क-वितर्क करने में प्रवीण बन जाय, किन्तु उसकी ये समस्त विशेषताएँ काम वहीं तक आती हैं, जहाँ तक उसका यह वर्तमान जीवन है । इसके पश्चात् आत्मा को इससे कोई लाभ नहीं होता और यह ज्ञान उसे पुनः पुनः संसार - परिभ्रमण करने से रोक नहीं सकता । मेरा आशय भौतिकज्ञान की व्यर्थता साबित करना अथवा बुराई करना नहीं है | चूँकि हमने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है, मनुष्य देह पाई हैं और संसार के अन्य व्यक्तियों से हमारा इहलौकिक सम्बन्ध भी है अत: हमें सांसारिक कर्तव्यों को निभाने के साथ-साथ जीवन यापन करने के साधनों को जुटाना भी है । इसलिए भौतिक ज्ञान की प्राप्ति करना आवश्यक है । पर हमें इस जीवन को सफलतापूर्वक बिताने के साथ-साथ यह भी कभी नहीं भूलना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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