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ज्ञान की पहचान चाहिए कि इस जीवन के पश्चात् भी हमारी आत्मा विद्यमान रहेगी और इस जीवन में किए हुये उत्तम या निम्न कर्मों के अनुसार उसे अगले जीवन में फल मिलेगा । अगर इस बात पर हमें विश्वास रहेगा तो हम निश्चय ही भौतिक ज्ञान के द्वारा परलोक को सुधार लेंगे। आध्यात्मिक ज्ञान
अभी मैंने आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा परलोक सुधारने की बात कही है अतः अब आध्यात्मिक ज्ञान क्या है, हमें इसे भी जान लेना जरूरी है।
आध्यात्मिक ज्ञान सर्वप्रथम हमें यह बताता है कि आत्मा का अस्तित्व अनन्त काल से चला आया है और चौरासी लाख योनियों में जन्म लेकर अनेकानेक प्रकार के दुःख सहने के पश्चात् इस मनुष्य शरीर को प्राप्त कर सकी है । आध्यात्मिक ज्ञान यह भी बताता है कि पाप और पुण्य क्या हैं तथा इनके परिणाम किस प्रकार आत्मा को भोगने पड़ते हैं। इसके पश्चात् यह ज्ञान ही हमें बताता है कि आत्मा का कल्याण कैसे हो सकता है, यानी किन उपायों से आत्मा जन्म-मरण से छुटकारा प्राप्त कर सकती है और छुटकारा पाने का मार्ग कौन सा है ?
भगवान् महावीर ने 'श्री उत्तराध्ययन सूत्र' के अट्ठाईसवें अध्याय की गाथा में कहा है
नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा।
एस मग्गोत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ।। ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप, इनका आराधन ही मोक्ष का मार्ग है, ऐसा सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी जिनराज ने कहा है। __बंधुओ, हमारी दृष्टि तो अत्यन्त संकुचित एवं सीमित है। आँखों के सामने कपड़े का एक परदा भी लगा दिया तो उसके पीछे क्या है, यह हम देख नहीं सकते । इतना ही नहीं, आँख के ऊपर छोटी-सी पलक के गिरते ही सारा संसार हमारी आँखों से ओझल हो जाता है।
किन्तु जिनेश्वर भगवान् की दृष्टि सर्वदर्शी होती है। जिसके सामने कोई भी पदार्थ, पर्दा, दीवाल, पहाड़ या और कुछ भी क्यों न आ जाय वह बाधा नहीं डाल पाता । वे एक स्थान पर बैठे-बैठे ही इस पृथ्वी पर क्या हो रहा है यह भी देख लेते हैं। इसीलिए उनकी दृष्टि दिव्य-दृष्टि या सर्वदर्शी कहलाती है।
आप सोचेंगे उन्हें ऐसी दृष्टि कैसे प्राप्त हुई और हमें वह क्यों नहीं मिलती ? इसका उत्तर यही है कि उन्होंने ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप का
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