Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 291
________________ २७६ आनन्द-प्रवचन भाग-४ भी छुटकारा मिल सकता है किन्तु स्त्री के मोह रूपी बंधन से कभी भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता अतः मैं इस बंधन में कदापि नहीं बँधना चाहता।" यह कहकर वे वन में तपस्या करने के लिये चल दिये। तो बन्धुओ, मुख्य बात यही है कि अगर मानव अपनी आत्मा का कल्याण चाहता है तो उसे धन-वैभव, स्त्री, पुत्र आदि समस्त सांसारिक बंधनों से उदासीन होकर सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति करना चाहिए और इसके लिए धर्मशास्त्रों का अध्ययन करते हुए उनके आदेशानुसार अपनी श्रद्धा को दृढ़ रखते हुए सम्यकचारित्र को अपनाना चाहिए। धर्मशास्त्र भले ही अनेक हों, किन्तु उनके मूल तत्व एक हों तो उन्हें जैन धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं समझना चाहिये। जैन धर्म में अन्य कोई विशेष भेद की बात नहीं है। वह शब्द रहित है । गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर मालूम पड़ सकता है कि इसमें मूल शब्द 'जन' है । हम सब जन कहलाते हैं। जन पर दो मात्राएं लगाई गई हैं 'जैन' कहने के लिये और वे दो मात्राएँ ज्ञान और क्रिया की समझनी चाहिए । ये दोनों जिसके जीवन में हों वही जैनी है अकेले ज्ञान या अकेली क्रिया से मतलब सिद्ध नहीं होता। ज्ञान होने पर जहाँ क्रिया न हो, और जहाँ क्रिया हों किन्तु ज्ञान न हो वहाँ जैन धर्म का अस्तित्व नहीं रहता। बहुत से व्यक्ति इस बात को न समझने के कारण जैनधर्म को एक भिन्न ही धर्म मानते हैं । लेकिन बात ऐसी नहीं है। उसमें है केवल यही कि ज्ञान के साथ-साथ आचरण भी हो ऐसा जैनधर्म कहता है। और जिस धर्म में भी ये दोनों बातें आवश्यक मानी जाती हैं वह जैनधर्म से अलग नहीं हो सकता। इस प्रकार श्रद्धा, ज्ञान और कर्म इन तीनों के सुमेल से जो भी धर्म अस्तित्व में आता है वह जीव को संसार-मुक्त होने में सहायक बनता है तथा उसे मंजिल तक पहुंचाता है। किसी को भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि हमारा धर्म ही मोक्ष दिलाता है। उदाहरण के लिए आपके नागपुर में किसी को आना हो तो क्या एक ही दिशा या एक ही मार्ग से कोई आ सकता है ? दूसरी दिशा या दूसरे मार्ग से नहीं ? ऐसी बात नहीं हैं। व्यक्ति किसी भी ओर से इस शहर में पहुंच सकता है । शर्त केवल यही है कि उसे मार्ग का ज्ञान हो, उस मार्ग से नागपुर आ जाएगा इसका विश्वास हो, और वह अपने विश्वास के अनुसार चले भी। अगर इन तीनों में से किसी एक का भी अभाव होगा तो वह नागपुर में नहीं पहुंच सकेगा। जैसे मार्ग की तो उसे जानकारी हो पर वह चले नहीं,या चल भी पड़े पर मार्ग का ज्ञान न हो तो न जाने किस ओर भटक जाएगा। इसलिए विश्वास, ज्ञान और क्रिया, इन तीनों का एक For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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