Book Title: Anand Pravachan Part 04
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

Previous | Next

Page 290
________________ सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् २७५ नारि नसावै तीन सुख, जेहि नर पासे होय । भक्ति, मुक्ति अरु ज्ञान में, पैठ सके ना कोय ।। कहते हैं कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से छूटना चाहता है और मोक्ष धाम को पहुंचने की आकांक्षा रखता है किन्तु वहाँ तक पहुँच कोई बिरला ही पाता है । इसका कारण कवि ने यह बताया है कि मोक्ष मार्ग का रास्ता बड़ा ऊबड़-खाबड़ है तथा दो तो बड़ी भयंकर घाटियाँ हैं जिन्हें कनक और कामिनी कहा जाता है। इन दोनों के प्रबल आकर्षण से बचना बड़ा कठिन है और जब तक इनसे विरक्ति न हो जाय साधना के पथ पर यानी * मुक्ति की ओर जाने वाले मार्ग पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। कवि ने एक और उदाहरण दिया है कि भक्त बड़े उत्साह और उमंग के साथ भगवान से मिलने के लिये भक्ति-मार्ग पर कदम रखता है, अर्थात् भक्ति करना प्रारम्भ करता है। किन्तु कनक यानी सोना और धन तथा कामिनी रूपी तलवार उसे रास्ते में ही मार गिराते हैं। इतिहास हमें अनेक दृष्टान्त ऐसे बताता है, जिनमें बड़े-बड़े तपस्वी और भक्त भी काम विकारों के वशीभूत होकर अपनी भक्ति और तप को मिट्टी में मिला चुके हैं। जैसे विश्वामित्र पराशरप्रभृतयो वाताम्बुपर्णाशना-- स्तेऽपि स्त्रीमुखपङ्कजं सुललितं दृष्टव मोहंगताः । विश्वामित्र और पराशर आदि अनेक ऋषि हो चुके हैं। जिनमें से कोई वायु भक्षण करके रहता था, कोई जल पर ही जीवन निर्वाह करता था और कोई वृक्षों के पत्तों पर ही अपना जीवन चलाता था। किन्तु ऐसी तपस्या करने वाले भी नारी का सुन्दर मुख देखते ही विकारग्रस्त हो गए। इसीलिये पद्य में आगे कहा गया है नारि नसावं तीन सुख, जेहि नर पासे होय । भक्ति मुक्ति अरु ज्ञान में पैठ सके ना कोय । अर्थात् अगर स्त्री पुरुष के समीप रहे तो वह मनुष्य को भक्ति, ज्ञान और मुक्ति, इन तीनों की प्राप्ति में बाधा डालती है । दूसरे शब्दों में इन तीनों में गति नहीं करने देती। इसीलिये कवि ने स्त्री-संगति अथवा विषयों से बचने की प्रेरणा दी है ताकि मानव धन और स्त्री सम्बन्धी प्रलोभनों से बचकर निरा कुलता पूर्वक ज्ञान प्राप्त कर सके । कहते हैं कि व्यास जी ने शुकदेव से विवाह करने का आग्रह किया और नाना प्रकार से उन्हें समझाया । किन्तु शुकदेव जी ने उनकी एक भी बात नही मानी । उलटे कहा-'पिताजी ! लोहे की और काठ की बेड़ियों से तो फिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360