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आनन्द-प्रवचन भाग-४ सखावत वसे ऐबरा कीमियास्त,
सखावत हमादर्दहारा दवास्त ॥" -ऐ, अच्छे नसीब वाले ! तू दान कर, क्योंकि फूटे नसीब वाले क्या दान देंगे ? ऐ, नेकवख्त ! तू ही सखावत यानी दान को अपना, क्योंकि दान देने से मर्द भाग्यशाली बनते हैं । दान देना ही समस्त दर्दो को मिटाने वाली एकमात्र, दवा है अतः दान दिया कर।
इस प्रकार जैन व अजैन सभी धर्म दान को महत्व देते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति को दान देने की प्रेरणा करते हैं । एक दोहे में कहा भी है
"सभी पंथ और ग्रंथ में, बात बतावत तीन ।
राम हृदय, दिल में दया, तन सेवा में लीन । दुनिया में जितने भी पंथ और धर्म ग्रंथ हैं उनमें तीन मुख्य बात बताई गई हैं। पहली है-हृदय में सदा राम को रखो ! यह मत कहो
God is no where ईश्वर कहीं नहीं है। अपितु Where का w पीछे सरका दो, उत्तर सही मिल जायगा
God is now here. यानी भगवान अभी यहाँ अर्थात् हमारे हृदय में ही है ।
ईश्वर को चाहे गॉड, राम, अल्लाह या भगवान किसी भी नाम से पुकार। बात एक ही है । केवल आवश्यकता है श्रद्धा की। श्रद्धा के बिना लिया हुआ भगवान का नाम केवल तोता रटन्त ही कहलायेगा, जिससे कोई लाभ नहीं होगा।
तो बंधुओ, मैं आपको पुरुष के पाँच लक्षण बता रहा था उनमें से पहला है-सत्पात्र के लिए त्याग करना यानी उसे दान देना । त्याग और दान का महत्व अभी हमने समझा है और अब हम सत्पुरुष के दूसरे लक्षण पर आते हैं। (२) गुणे रागी
सच्चे पुरुष का दूसरा लक्षण है-सद्गुणों के प्रति अनुराग रखना। जो व्यक्ति उत्तम गुणों के प्रति अनुराग रखता है वह उन्हें अपनाने का भी प्रयत्न करता है।
गुणों का महत्व शब्दों से बताना संभव नहीं है । ये मानव जीवन के ऐसे बहुमूल्य आभूषण हैं, जिनके द्वारा आचरण निर्मल और पवित्र बनता है । तथा जीवन निखर जाता है। गुणी व्यक्ति जहाँ भी जाता है, सर्वत्र आदर और सम्मान प्राप्त कर लेता है। गुणों की प्रत्येक स्थान पर पूजा होती है, धनसम्पत्ति, कुल अथवा शरीर के सौंदर्य की नहीं।
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