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उत्तम पुरुष के लक्षण
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संसार के जीव चाहे सभी दरिद्र हों, रोगी हों, या किन्हीं कारणों से अत्यन्त दुःखी हों, फिर भी मरना नहीं चाहते, जीवित रहने का ही प्रयत्न करते हैं ।
यही हाल ब्राह्मण देवता का भी हुआ। मरने के लिए रवाना होते हुए थे, पर रास्ते में ही उससे मुँह मोड़कर रैदास चमार के पास आ गए और उसके चरणों पर गिरकर फूट-फूटकर रोने लगे ।
रैदास ने शीघ्रता से उन्हें उठाया और रोने का कारण पूछा । अब ब्राह्मण ने अथ से लेकर इति तक उसे सारी बात बतादी और कहा - "भक्त रैदास, अब तुम्हीं मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिला सकते हो । अगर राजा को मैंने दूसरा कंगन ले जाकर नहीं दिया तो मुझे जान से मरवा देंगे। मेरी लाज तुम्हारे ही हाथ में है अतः कृपा करके मुझे तुम एक और सुपारी दो ताकि मैं गंगा मैया से मांग कर दूसरा कंगन ला सकूँ ।
ब्राह्मण की बात सुनकर रैदास मुस्कराए और बोले - " ब्राह्मण श्रेष्ठ ! तुम्हारी हालत बहुत खराब हो रही है अतः तुम्हें पुन: उतनी दूर जाकर गंगामैया से कंगन लाने की आवश्यकता नहीं है, मैं उस गंगा मैया से यहीं माँग कर दे देता हूँ ।"
यह कहते हुए रैदास जी ने अपने सामने रखे हुए चमड़ा भिगोनेवाले मिट्टी के कुण्ड में, जिसमें पानी भरा था, हाथ डाला और उसी क्षण पहले वाले कंगन के समान एक दूसरा कंगन निकाल लिया और ब्राह्मण को देते हुए कहा
"लो इसे ले जाकर राजा को दे दो तथा अपनी मुसीबत से छुटकारा प्राप्त करो। "
चमड़ा भिगोने के अशुद्ध पानी से ही रैदास के द्वारा गंगा माता का दान वह कंगन निकालते देखकर ब्राह्मण मुँह बाये अवाक् खड़ा रह गया । रैदास ने मुस्कराते हुए पूछा -- "क्या सोच रहे हो ? कंगन ले जाओ न ।” ब्राह्मण ये शब्द सुनकर मानों तन्द्रा से जागा और पुनः रैदास के चरणों पर गिरकर कहने लगा
" रैदास जी ! ईश्वर के और गंगा-माता के सच्चे भक्त आप ही हैं । मैं तो महापापी और धोखेबाज हूँ । इसीलिए मैं सैकड़ों बार गंगा स्नान करके भी जो नहीं पा सका वह आपने बिना एक बार भी गंगा में स्नान किये प्राप्त कर लिया । मुझे क्षमा करो ! धन्य हैं आपके गुणों को, जिन्होंने इतनी दूर से भी गंगा-माता को प्रभावित करके वरदान देने को बाध्य कर दिया ।"
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