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विषममार्ग को मत अपनाओ ! आदि को धर्म का फल उनके अगले लोक में तो मिला होगा जो मिला ही होगा पर इस लोक में ही मिल गया था और वे असंख्य व्यक्तियों के आदर पात्र एवं पूज्य बनकर अपने आपको आदर्श बना गये थे।
महात्मा गाँधी का भी परलोक हम नहीं मानते किन्तु उनके अहिंसा एवं सत्य-कर्म को ग्रहण कर लेने के कारण केवल भारत ही नहीं, वरन् अन्य समस्त देश भी आज उनके पदचिन्हों पर चलने का प्रयत्न करते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन भी एक ऐसे ही महा-मानव थे जिन्होंने धर्म का प्रत्यक्ष और बाह्य लाभ अपने जीवन में ही हासिल कर लिया था ।
एक बार वे अपने घोड़े पर सवार होकर घूमने के उद्देश्य से सड़क पर चल पड़े।
रास्ते में उन्होंने देखा कि कुछ मजदूर एक बड़े भारी लक्कड़ को उठाने का प्रयास कर रहे थे। उन मजदूरों में एक वृद्ध व्यक्ति था और वह निर्बलता के कारण अपने साथियों के समान उस लट्ठे को उठाने में जोर नहीं लगा पा रहा था। परिणामस्वरूप उसकी ओर का लट्ठा बार-बार झुक जाता था।
यह देखकर समीप ही खड़ा मजदूरों का जमादार उसे बार-बार फटकार कर ठीक तरह से लक्कड़ उठाने का आदेश दे रहा था। पर उसके आदेश से तो वृद्ध में शक्ति का आविर्भाव हो नहीं सकता था, अतः वह बार-बार पूरा प्रयत्न करके भी बेहाल हुआ जा रहा था।
यह देखकर वाशिंगटन ने जमादार से कहा- "भाई ! उस वृद्ध की ओर से तुम्हीं थोड़ी मदद कर दो।"
पर जमादार ने रौब से उत्तर दिया-“मैं जमादार हूं। मेरा काम मजदूरों से कार्य करवाना है उनकी सहायता करना नहीं।"
यह सुनकर जार्ज वाशिंगटन चुपचाप घोड़े से उतरे और उन्होंने उस निर्बल वृद्ध से कहा
'बाबा, तुम हट जाओ, मैं लट्ठा उठवा देता हूं।"
वृद्ध ने इन्कार किया पर वे माने नहीं और तुरन्त मजदूरों के साथ लगकर उन्होंने लट्ठा उठवा दिया। तत्पश्चात् जमादार को नमस्कार करके बोले"जमादार जी ! अगर फिर कभी आवश्यकता हो तो मुझे बुलवा लीजियेगा मेरा नाम जार्ज वाशिंगटन हैं।"
जमादार अपने देश के राष्ट्रपति को नाम से जानता था, शक्ल से नहीं। अतः ज्योंहीं उन्होंने अपना नाम बताया उसके पैरों तले से जमीन
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