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विषममार्ग को मत अपनाओ !
२४६ वरन् भावनाओं के उत्कर्ष से होती है : यहो बात आपको संत-मुनिराज एवं महापुरुष बार-बार समझाते हैं । एक मराठी कवि भी कहते हैं
"ध्यानात दंग असशी, बदली नजीक आली ।
पुढची तमारी जिवबा, वद काय काय केली ? क्या कहा है कवि ने ? यही कि-'तुम दुनियादारी के कारोबार में और सांसारिक झमेलों में पूरी तरह निमग्न हो गये हो और जितनी उम्र लेकर आए थे, उसका काफी बड़ा भाग भी व्यतीत कर चुके हो। अब तो जीवन की बदली का समय नजदीक आ गया है, पर जरा बताओ कि आगे के लिए तुमने क्या-क्या तैयारी की है ?" ____ कवि का कथन अत्यन्त मर्मस्पर्शी है। उन्होंने व्यतीत होती हुई जिन्दगी को आगे की जिन्दगी से बदली होने का उल्लेख करके भाषा में सुन्दरता लाने के साथ-साथ भाव में भी बड़ी गंभीरता भर दी है। साथ ही बता दिया है कि बदली होने पर मिलनेवाले आगामी जीवन के लिये मनुष्यों को अनिवार्य रूप से तैयारी कर लेनी चाहिए। यात्रा में की जानेवाली तैयारी से तो आप अपरिचित नहीं हैं । जब भी आप एक शहर से दूसरे शहर को अथवा अपने देश से दूसरे देश को जाते हैं तो पहनने के वस्त्र, ओढ़ने-बिछाने के लिए रजाई-गद्दे, खाने के लिए नाना भांति के पदार्थ और किराया तथा सैर-सपाटे में व्यय करने के लिये लम्बी रकम लिए बिना नहीं चलते।
किन्तु एक जीवन को छोड़कर दुसरे जीवन की महायात्रा के लिए आप क्या करते हैं ? इस पृथ्वी पर की छोटी-छोटी यात्राओं के लिए तो जमाने भर की तैयारी, और उस महायात्रा के लिए कुछ भी नहीं ? पर इससे कैसे काम चलेगा? यहाँ की छोटी यात्राओं में भी अगर किसी चीज का अभाव होता है तो आप कष्ट का अनुभव करते हैं। पर उस महत्वपूर्ण और लम्बी यात्रा में जब आपके पास कुछ भी पाथेय नहीं होगा तो क्या आप घोर कष्ट का अनुभव नहीं करेंगे ? अवश्य ही करना पड़ेगा। ___तो बंधुओ ! जब कि हमें वह महान् यात्रा करनी ही है तो निश्चय ही उसके लिए पाथेय जुटाना चाहिए। वह पाथेय या तैयारी क्या होती है उसके विषय में आप अनभिज्ञ नहीं हैं, क्योंकि प्रतिदिन हम यही बात आपसे कहते हैं । पर फिर भी चंद शब्दों में कहता हूँ कि—सत्य, अहिंसा, तप, त्याग, दान, दया, सहानुभूति, सेवा, क्षमा आदि सद्गुणों को जीवन में उतारना और दूसरे शब्दों में सम्यक्ज्ञान, सम्यक् दर्शन एवं सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय की
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