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उत्तम पुरुष के लक्षण
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. इस प्रकार त्याग और दान समान दिखाई देने पर भी एक दूसरे से भिन्न होते और दोनों में से त्याग अपना अधिक महत्त्व रखता है। त्याग के अलावा संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो आत्मा को पूर्णतया विशुद्ध बनाकर परमात्म पद की प्राप्ति करा सके । इस संसार में आज तक किसी ने भी अपने कर्म से, धन से, संतान से या शिक्षा से मोक्ष प्राप्त नहीं किया, अगर प्राप्त किया है तो केवल त्याग से । कहा भी है
___ "स्वयं त्यक्ता ह्यते शमसुखमनन्तं विदधति ।" ___ इन सांसारिक भोगोपभोगों का अपनी इच्छापूर्वक परित्याग कर देने से अनन्त सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार त्याग का जीवन में अतुलनीय महत्व है। किन्तु बंधुओ, दान भी कम महत्व नहीं रखता। जैसा कि अभी मैंने बताया था-दान अंतरंग की वस्तु हैं और आत्मा को अपने शुद्धरूप में लाने वाली है तथा दान बाह्य गुण है, किंतु यह बाह्य गुण भी कम महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि त्याग जहाँ आत्मा को लाभकारी होता है वहाँ दान संसार के अनेकानेक प्राणियों को सुख, संतोष और शांति पहुंचाने वाला बनता है। ____कोई व्यक्ति भले ही कितना भी त्यागी हो किन्तु अपने सामने आए हुए भूखे और नंगे व्यक्ति को रोटी और कपड़ा न दे तो वह मानवता से हीन ही माना जा सकता है। भगवान् महावीर का मुख्य उपदेश भी यही है किगरीबों पर अनुकम्पा रखते हुए उनके दुखों का निवारण करो। अनुकम्पा मनुष्य के अन्तःकरण में सात्विकता की ज्योति जगाती है। इसीसे प्रेरित होकर चौबीसों तीर्थंकरों ने दीक्षा ग्रहण करने से पहले एक वर्ष तक निरंतर दान दिया था। तीर्थंकर प्रतिदिन एक करोड़ और आठ लाख सोनैय्या दान में देते थे। ___ आप यह सुनकर आश्चर्य करेंगे और इस बात पर संदेह भी करने लगेंगे कि इतना धन उनके पास कहाँ से आता था ? इसका कारण यही है कि आज के युग में बुद्धिवाद एवं तर्क-वितर्क की शक्ति बढ़ गई है और इन्होंने श्रद्धा को धूमिल कर दिया है किन्तु जिन बचनों पर श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति शास्त्रज्ञान से जान सकते हैं कि तीर्थंकर अनन्त पुण्य लेकर ही जन्म लेते थे तथा उनकी सेवा में अनेक देव रहा करते थे। दीक्षा ग्रहण करने से पहले जब वे दान देना प्रारम्भ करते थे, देवता इधर-उधर पड़े हुए या लावारिसों के धन को भी उनके खजाने में लाकर डाल देते थे ताकि वे मुक्त हस्त से दान दे सकें। __ध्यान देने की बात है कि जिनके पल्ले में पुण्य होता है वही उस धन को
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