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आज-काल कि पाँच दिन,
जंगल होगा वास
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
जीवात्मा को संसार-परिभ्रमण से छुड़ाने के लिये भगवान ने बारह भावनाओं का निर्देश किया है जिनका सतत् चिंतन करने से आत्मा अपने स्वाभविक गुणों का विकास करती है तथा धर्म पर दृढ़ प्रतीति रखती हुई शनैःशनैः मुक्ति की ओर बढ़ती है।
बारह भावनाओं में से पहली भावना है अनित्यता । यह भावना बताती है कि इस संसार में जितने भी पदार्थ हैं, सभी क्षणभंगुर हैं । कोई भी चिरस्थायी रहनेवाला नहीं है । संस्कृत में एक कहावत है- 'यद् दृष्टम् तद् नष्टम् ।' ___ अर्थात् जो भी वस्तु दृष्टिगोचर होती है यानि आंखों से दिखाई देती है, वह नष्ट होनेवाली है । आत्मा आँखों से दिखाई नहीं देती अतः उसका नाश नहीं होता । वह अक्षय और अविनाशी है। किन्तु दिखाई देने वाली प्रत्येक वस्तु नाश को प्राप्त होगी। ___ आपके मन में संदेह होगा कि दिखाई तो सूर्य और चन्द्र भी देते हैं, तो क्या ये भी कभी नष्ट हो जायेंगे ? हाँ, शास्त्र कहते हैं कि चन्द्र, सूर्य, तारागण और नक्षत्र सभी की जिन्दगी है, आयुमर्यादा है। अगर उनकी आयुमर्यादा की पूर्णाहुति हो गई तो उन्हें अपना स्थान छोड़ना पड़ेगा। इस विषय में संत कबीर भी कहते हैं
चन्दा भी जाएगा सूरज भी जाएगा, जाएगा पवन और पानी ।
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