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मन के मते ना चालिये ...
जिस व्यक्ति में बुद्धि कम होती है वह अपने आपको बुद्धिमान साबित करने के लिये अधिक बोलता है तथा अपने से बड़ों के वचनों की काट करता रहता है । यह विवेक की कमी के लक्षण हैं ।
किन्तु इसके विपरीत जो विवेकवान होता है वह बहुत सोच विचारकर थोड़ा और उपयोगी बोलता है । ठीक एक सूनार के समान जो कि सोने को तोलते समय उसका वजन रत्ती भर भी कम या अधिक नहीं होने देता। बात ठीक भी है। बिना सोचे समझे और विवेक की कसौटी पर कसे बिना बोलने का परिणाम अच्छा नहीं निकलता, जिस प्रकार सेठ के साले की राजा से हुई बात का परिणाम निकला था।
तुलसीदास जी के भजन में भी आगे यही बात बताई जा रही है विवेक के अभाव में मानव जन्म के उद्देश्य की सिद्धि नहीं हो सकती। भजन की अन्तिम लाइनें इस प्रकार हैं
तुलसीदास हरी करुणा बिन, विमल विवेक न होवे । विन विवेक संसार घोर निधि पार न पाये कोई॥
माधव".... कहा है-'हरि की कृपा के बिना बिवेक विमल नहीं हो सकता और शुद्ध विवेक के अभाव में तो यह भयानक भव-सागर पार हो ही कैसे सकता है ? ___ इसलिये प्रत्येक मुमुक्षु को चाहिये कि वह सद्गुरु की संगति करे और उनके द्वारा भगवत् वाणी सुनकर उस पर चिन्तन-मनन करते हुए अपनी बुद्धि को निर्मल बनाए और बुद्धि व विवेक की सहायता से अपने चारित्र का सम्यक् रूप से पालन करे । जिस व्यक्ति का विवेक जागृत हो जाता है, वह गुणानुरागी बनता है और बुरी से बुरी वस्तु में से भी अच्छाई को ढूढ़ निकालता है । आचार्य चाणक्य का कथन है:
विवेकिनमनुप्राप्ता, गुणा यान्ति मनोजताम् । . सुतरां . रत्नमाभाति, चामीकरनियोजितम् ॥ .. विवेकी मनुष्य को पाकर गुण सुन्दरता को प्राप्त होते हैं, सोने में जड़ा हुआ रत्न अत्यन्त सुशोभित होता है।
वस्तुतः विवेकशील पुरुष कीचड़ में पड़े हुए रत्न को भी ग्रहण करते हैं उसे कीचड़ में लिप्त होने के कारण अग्राह्य नहीं करते । विवेक उनमें सत्य, सयम, निर्भयता और पुरुषार्थ को जगाता है। विख्यात दार्शनिक 'शेक्सपियर' ने भी कहा है
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