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आनन्द-प्रवचन भाग-४
आज दाने-दाने को मोहताज बना हुआ हैं और भिखारी लाटरी का एक टिकिट खुलते ही श्रेष्ठि बना घूमने लगा है। लक्ष्मी आज किसी के पास है तो कल किसी के पास । किसी को व्यापार में घाटा लगा तो वह अन्यत्र चली गई। और किसी को राह चलते ही प्राप्त हो गई। लक्ष्मी किसी की नहीं होती और उसको लेकर गर्व करने वाला व्यक्ति अज्ञानी ही साबित होता है। पुण्य का उदय हो तो वह किसी को मिल जाती है । और पाप का उदय होने पर हाथ में आई हुई भी सरक जाती है। दो पैसे में जवाहिरात बेच दिए
बहुत पहले लखनऊ का नवाब आसिफुद्दौला था। वह बड़ा उदार और दानी था। कहा जाता है कि उसके यहाँ से कोई भी अभावग्रस्त व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटता था। ___ एक बार वह दरबार में बैठा हुआ था कि उसके कानों में एक फकीर के ये शब्द पड़े
जिसको न दे मौला,
उसको दे आसिफुद्दौला। यह सुनकर नवाब बड़े गर्व से भर गया उसने समझा कि लोग उसकी उदारता से बड़े प्रभावित हैं और यह कहते हैं कि भगवान भी जिसको नहीं दे पाता उसे मैं देता हूं। इस प्रकार मैं भगवान से भी बढ़कर हूं। अपनी प्रशस्ति से खुश होकर नवाब ने उस फकीर को बुलाया और उसे एक तरबूज प्रदान किया।
फकीर बहुत असन्तुष्ट हुआ । उसने सोचा था कि नवाब के यहाँ से बहुत कुछ मिलेगा पर केवल एक तरबूज पाकर वह बड़ा खिन्न हुआ पर कहता क्या, मन मारे हुए वहाँ से चल दिया। ___मार्ग में उसे एक दूसरा फकीर मिल गया। वह भूखा था अतः उसने पहले वाले से पूछा- "बाबा, यह तरबूज बेचोगे क्या ?" तरबूज लाने वाला फकीर उदास तो था ही, उसने केवल दो पैसे में ही तरबूज माँगनेवाले दूसरे फकीर को दे दिया । और उस खरीदने वाले ने जब घर आकर तरबूज काटा तो उसमें से हीरे, मोती और माणिक निकल पडे । दो पैसे की खरीदी में इतना धन पाकर फकीर निहाल हो गया और छप्पर फाड़ कर देने वाले अल्लाह को लाख-लाख दुआएं देने लगा।
इधर कुछ दिन बाद ही पहले फकीर ने पुनः राज-दरबार में आकर आवाज लगाई
"जिसको न दे मौला, उसको दे आसिफुद्दौला ।
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