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शास्त्र सर्वत्रगं चक्षुः
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इनकी तरतमता को भलीभांति समझाने के लिये शास्त्रों में उदाहरण भी दिया गया है। वह इस प्रकार है।
एक बार छः व्यक्ति एक आम के बगीचे में पहुँचे । आमों से लदे एक वृक्ष को देखकर उनकी इच्छा आम खाने की हो गई। अतः उनमें से एक बोला- "भाइयो ! अगर इस आम्र-वृक्ष को हम जड़ से काट लें तो इच्छानुसार भर पेट आम खा सकते हैं।" उस पुरुष की इस निकृष्ट भावना को कृष्ण लेश्या कहा जा सकता है।
उन व्यक्तियों में से दूसरा बोला—''अरे, वृक्ष को मूल से मत काटो, जिस डाल में अधिक आम लगे हैं उसी को काटकर नीचे गिरा लो तो हमारा सबका काम बन जायेगा और हम भरपेट आम खा लेंगे।," इस द्वितीय पुरुष की भावना भी यद्यपि निकृष्ट थी किन्तु पहले व्यक्ति की अपेक्षा विशुद्ध होने से नील लेश्या कही जा सकती है। ____ अब छहों में से तीसरा व्यक्ति बोला-"अरे ! इतनी मोटी और पूरी की पूरी शाखा काटने से क्या लाभ है ? केवल वही टहनियाँ काटो जिनमें आम लगे हुए हैं ।' तीसरे व्यक्ति की यह भावना दूसरे की अपेक्षा अधिक शुद्ध है अतः उसे कापोत लेश्या कहा गया है। ____ चौथा व्यक्ति बोला-'भाइयो ! वक्ष की टहनियाँ भी व्यर्थ काटने से क्या फ़ायदा ? हमें फल ही तो खाने हैं अतः पत्थर मार-मार कर फल ही न गिरा लें ? पके-पके हम सब खा लेंगे और कच्चे-कच्चे छोड़ देंगे।" इस चौथे पुरुष की विचारधारा तीसरे से कुछ श्रेष्ठ है अत: उसे पीत लेश्या कहा है।
अब पाँचवें व्यक्ति की बारी आई । उसने कहा-"जब हमें कच्चे फलों को नहीं खाना है तो उन्हें व्यर्थ गिराने से क्या लाभ होगा ? अच्छा हो कि हम सावधानी से केवल पके-पके आम ही गिराएँ और उन्हें खालें।" इस पुरुष की भावना काफी विशुद्ध रहीं अतः वह पद्म लेश्या कहलाई।।
छठा व्यक्ति अभी चुपचाप बैठा सभी की बातें सुन रहा था। अब वह बोला-"वृक्ष को काटना या उस पर पत्थर मार-मार कच्चे-पक्के फलों को गिरा लेना ठीक नहीं है । सबसे अच्छा यही है कि कुछ देर इस वृक्ष के नीचे बैठकर प्रतीक्षा करो और जो पके फल स्वयं गिरें उन्हें सेवन करो।" छठे व्यक्ति की यह भावना सर्वश्रेष्ठ है । इससे साबित होता है कि वह व्यक्ति अपने पेट भरने के लिए अन्य किसी को तनिक भी कष्ट पहुंचाना नहीं चाहता। उसकी इस सुन्दर और करुणामय भावना को शुक्ल-लेश्या कहा गया है।
कृष्ण-लेश्या रखने वाला यानी सबसे निकृष्ट भावना रखने वाला व्यक्ति जिस प्रकार वृक्ष को मूल से काट देना चाहता था, उससे स्पष्ट हो जाता है
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