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शास्त्र ं सर्वत्रगं चक्षुः
आदर्शह जटि र्ज्ञानं स लेभे
अर्थात् – महाराज भरत छ : खण्ड के अधिपति थे । उनके मुख में सदा पान का बीड़ा रहता था और शरीर बहुमूल्य आभूषणों से विभूषित रहता था । सुन्दर-सुन्दर रत्नों से जटिल महल में वे निवास करते थे, फिर भी उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया ।
ऐसा क्यों और किसके प्रभाव से हुआ ? केवल उनके सुन्दर विचारों से ही तो । उनके हृदय में अनासक्ति की भावना अत्यन्त प्रबल थी और चक्रवर्ती होकर भी वे सदैव समभाव में रमण किया करते थे । इसीलिए जो परम लाभ घोरतर तपस्या से भी उपलब्ध होना कठिन होता है वह उन्हें बिना तपस्या किये महल में बैठे ही प्राप्त हो गया ।
वस्तुतः शुद्ध एवं अनासक्त विचार जीवन पर बड़ा भारी प्रभाव डालते हैं तथा आत्म-कल्याणकारी बनते हैं । अतएव शास्त्र का आदेश मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह कुविचारों को विषधर नाग के समान समझकर उनका त्याग करे | नाग तो फिर भी डस लेने पर केवल एक ही जीवन का अत करता है, किन्तु दूषित विचारों के नाग डस लेने पर अनेक जन्मों तक अपने विष का प्रभाव बनाये रखते हैं । इसके कारण ही जीव पुनः पुनः जन्म लेता है और मरता है । इनसे बचने के लिए हमें शास्त्रों का अध्ययन करना और उसमें बताए हुए निर्देशों को अपने जीवन में उतारना चाहिये ।
वैष्णव धर्म ग्रंथों में श्रुति और स्मृति, दो प्रकार के शास्त्र आते हैं । श्रुति में आते हैं उपनिषद्, जो तात्विक ज्ञान प्रदान करते हैं और स्मृति में स्मरण रखने वाली बातों का निर्देशन होता है जिन्हें जानकर मनुष्य यह समझ सकता है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या न करना चाहिए । हमारे जैन शास्त्र यही विषय ज्ञान - क्रिया के रूप में बताते हैं । तो श्रुति और स्मृति अथवा ज्ञान और क्रिया दोनों को ही जीवन में उतारना आवश्यक है ।
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सुरत्ने - वरभावतोऽत्र ॥
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कुछ व्यक्ति कहते हैं - व्यवहार में क्या रखा है असली चीज तो मन की शुद्धि है । अगर हमारा मन ठीक है तो हमारी आत्मा का कल्याण हो ही जाएगा । ऐसा कहने वाले बड़ी भारी भूल करते हैं । उन्हें जानना चाहिए कि केवल किसी वस्तु का ज्ञान मात्र हो जाने से ही वह लाभदायक नहीं बन जाती । उदाहरण स्वरूप आपके रसोई घर में क्या-क्या बना है, कितना बना है और उनमें से खट्टी मीठी तथा चरपरी चीजें कौन-कौन सी हैं इसकी जानकारी कर लेने से ही कभी पेट नहीं भरता । पेट तभी भरेगा जबकि उन्हें हाथों से उठाकर मुँह में डाला जायेगा और उदरस्थ किया जायेगा । इसी प्रकार दान,
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