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आनन्द-प्रवचन भाग-४
सकती । संसार में अनेकों क्रांतियाँ ऐसी हुई हैं जबकि एक मामूली सैनिक या व्यक्ति भी अल्पकाल में ही सत्ताधारी बना दिखाई दिया है। स्पष्ट है कि एक दिन पहले जो पेट भरने का भी मुहताज दिखाई देता था वहीं अगले दिन सम्राट बन गया था और जो राजगद्दी का मालिक था वह अगले दिन भूखाप्यासा और ऊपर से अपनी जान बचाने को व्याकुल मारा-मारा फिरा था। उसकी सत्ता, उसका राज्य और अधिकार में रही हुई लम्बी-चौड़ी पृथ्वी भी अल्पकाल में ही दूसरे की होती देखी गई है।
राजा भर्तृहरि ने अपने एक श्लोक में कहा भी है कि अपने राज्य, ऐश्वर्य और पृथ्वी पर के स्वामित्व का गर्व करना पूर्णतया निरर्थक है । क्योंकि -:
अभुक्तायां यस्यां क्षणमपि न यात नृपशतर्भुवस्तस्या लाभं क इव बहुमान: क्षितिभुजाम् । तदंशस्यात्यंशे तदवयवलेशेऽपि पतयो;
विषादे कर्तव्ये विदधति जड़ाः प्रत्युतमुदम् ।। अर्थात्-सैकड़ों-हजारों राजा इस पृथ्वी को अपनी-अपनी कहकर चले गये, पर यह किसी की भी न हुई । तब फिर राजा लोग इसके स्वामी होने का घमण्ड क्यों करते हैं ? खेद की बात है कि छोटे-छोटे राजा पृथ्वी के छोटे से छोटे टुकड़े के मालिक होकर ही अपने स्वामित्व के लिए फले नहीं समाते । असल में जिस बात से दुख होना चाहिए, मूर्ख उससे उलटे खुश होते हैं। __वस्तुतः इस पृथ्वी पर आज तक असंख्य व्यक्तियों का स्वामित्व हुआ लेकिन अपनी चंचलता के कारण वह किसी के पास भी स्थिर नहीं रह सका। कभी वह सत्ताधारी के जीवित रहते ही बदल गया और नहीं तो उसकी मृत्यु होने पर दूसरे के पास गया । लंकेश्वर रावण, जिसने यक्ष, किन्नर, गन्धर्व और देवताओं तक को अपने अधीन कर लिया था और त्रिलोकी को अपनी अंगुलि पर नचाता हुआ कहता था-मेरी बराबरी का प्राणी इस विश्व में कहीं नहीं हैं। क्या उसका स्वामित्व कुछ काल में ही राम के पास नहीं चला गया था ? और वह राम जिन्होंने समुद्र पर भी सेतु बांधकर रावण का मान मर्दन किया था वह भी आज कहाँ हैं ? रावण के मस्तक पर चिराग रखकर उसे जलाने वाला सहस्रबाह जीवित नहीं रहा तथा अपने भुजबल से वीरता का सिक्का चारों दिशाओं में जमानेवाले भीम व अर्जुन, महादानी हरिश्चन्द्र, कर्ण और बलि से दानी भी अपने स्वामित्व को स्थिर नहीं रख सके।
कहने का अभिप्राय यही है कि स्वामित्व और प्रभुता अति चंचल है। जिस प्रकार बिजली की चमक और बादल की छाया चपलता के कारण क्षणक्षण में परिवर्तित हो जाती हैं, उसी प्रकार स्वामित्व अथवा अधिकार भी
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