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आनन्द-प्रवचन भाग-४ साले साहब को और किसी चीज का नाम बताना तो हड़बड़ी में याद नहीं रहा छूटते ही बोल पड़े– “सेठ साहब तीर्थ यात्रा से आपके लिये 'राख' लाये हैं।"
यह सुनते ही राजा को क्रोध आ गया। राजा लोग होते भी ऐसे ही है क्षणभर में ही वे रुष्ट हो जाते हैं और क्षणभर में तुष्ट। तो जब राजा ने सेठजी के साले की यह बात सुनी तो वे नाराज हो गए और उन्होंने साले जी को दरबार से निकलवा दिया। साथ ही कहा - "मुझे क्या तपस्या करनी है जो राख लेकर आए हो ।”
सेठजी ने जब सारा वृत्तान्त सुना तो बड़े चिंतित हुए । राजा से विरोध करके नगर में रहा भी कैसे जा सकता है ? पर उनकी चिंता को उनके मुनीम जी ने मिटाने का वचन दिया और कुछ दिन ठहर कर वे भी एक दिन राजा के दरबार में सेठजी की ओर से सौगात लेकर पहुंचे। राजा ने उनसे भी पूछा- “क्या लाए हैं सेठजी हमारे लिये ?'
अनुभवी मुनीम जी ने बड़ी शांति से लाई हई सभी चीजें राजा को बताई और उसके पश्चात् कहा- हुजूर ! सेठ साहब एक विशेष चीज और वह भी केवल आपके लिये ही लाए हैं। यह कहकर उन्होने मखमल में लपेटी हुई अत्यन्त सुन्दर और छोटी सी डिब्बी निकाली और राजा की और बढ़ाते हुए कहा
"महाराज ! इस डिब्बी में सेठ साहब ऐसी चमत्कारिक भस्म लाए हैं जिसका प्रयोग करने पर कैसी भी भयंकर बीमारी क्यों न हो, मिट जाती है। बड़ी कठिनाई से एक बड़े भारी तपस्वी से इसे प्राप्त किया गया है सिर्फ आपके लिये ही।
राजा यह सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला
"ओह ! सेठजी कितना ध्यान रखते हैं मेरा ? उन्होंने बड़ा अच्छा किया, मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती है।" ___बंधुओ ! बात एक ही थी। सेठजी के साले भी वही राख लेकर गए थे और मुनीम जी भी उसे ही लेकर गए। किन्तु बोलने के ढंग से जमीन आसमान का अन्तर पड़ गया। विवेक पूर्वक और बुद्धि सहित बोलने से अनर्थ टल जाता है और बिना विवेक बोलने से अर्थ का भी अनर्थ हो जाता है। कहा भी है
बुद्धि थोड़ी ने बहु भरमे, जिन समझ मोहाना वेण भरडे । समझणे बिना कहेशे सांचू, एक बहुना बिना सगेलू कांचू ।
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