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आनन्द-प्रवचन भाग-४ ____ हमें ऐसी भूल नहीं करनी है तथा सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी प्रभु की वाणी पर विश्वास करते हुए आत्मा, परमात्मा तथा जीव और जगत के रहस्य को समझ कर वही करना है जिससे आत्मा का कल्याण हो सके । हमें जीवन की नश्वरता तथा अल्पकालीनता को भी भली-भाँति जान लेना है।
मनुष्य का जीवन अधिक से अधिक कितना है ? तीन पल्योरम का। यह परिमाण अकर्मभूमि के जीवों के जीवन का है। आप संभवतः पल्योपम का अर्थ नहीं समझ पाये होंगे अतः संक्षिप्त में आपको बताता हूं।
कल्पना कीजिये कि एक चार कोस लम्बा, चार कोस चौड़ा और चार कोस ही गहरा कोई कुआ है। उसमें बारीक बाल इस प्रकार ठसाठस भरे हुए हैं कि उन पर से चक्रवर्ती की सेना भी अगर गुजर जाय तो वे दब न सकें। तो बालों से ठसाठस भरे हुए कुए में से एक-एक बाल बाहर निकाला जाय और उन सबको निकालने में जितना समय लगे उसे एक पल्योपम कहते हैं। ऐसे तीन पल्योपमों का आयुष्य जैसा कि मैंने अभी बताया अकर्म भमि के ' जीवों के अनुसार होता है। . आप सोचेंगे कि ऐसी अजीब उपमा क्यों दी गई है ? इसका उत्तर यही है कि भगवान् ने जहाँ तक हो सका गिनती बता दी और जब गिनती होना असंभव हो गया तो उपमा के द्वारा समझाया । यह बात सही है कि ऐसा कुआ किसीने भरा नहीं और भरना संभव ही नहीं है किन्तु समय की अधिकता को समझाने के लिये ऐसी उपमा दी गई है।
__ आप स्वयं भी समझ सकते हैं कि एक बोरी में नारियल भरे हैं, उन्हें गिना जा सकता है। दूसरी बोरी में अखरोट भरे हैं उन्हें भी गिन लिया जा सकता है। तीसरी बोरी में सुपारियाँ हैं, किसी तरह वे भी गिनती में आ सकती हैं किन्तु चौथी बोरी में खसखस के दाने भरे हैं तो बताइये आप उन्हें गिन सकते हैं क्या ? नहीं, उन्हें गिनना संभव नहीं है अतः उनके लिये केवल तौल या माप ही काम आता है । इसी प्रकार आयुष्य के वर्षों की गिनती हो सकनी जब संभव नहीं रही तो भगवान् ने पल्योपम के रूप में समय का अन्दाज करने के लिये माप बता दिया । इस प्रकार हम जान सकते हैं कि माप का काम माप से बजन का तौल से, और गिनती का गिनती से करना चाहिये।
पल्योपम के आधार पर समय का अंदाजा लगाना अविश्वासनीय नहीं है। भगवद गीता में भी एक श्लोक के द्वारा समय के माप को दूसरे तरीके से बताया है। श्लोक की एक लाइन है -
"चतुर्विद सहस्रांश ब्रह्मणो एक विदे।"
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