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आज काल कि पांच दिन जंगल होगा वास
१४६ "श्रवण की अपेक्षा मनन में हजार गुनी अधिक शक्ति है और मनन की अपेक्षा अनुसरण में हजार गुनी औ अधिक ।' ___ इसलिये बंधुओ ! आप केवल सुनने का ही शोक मत रखो अपितु उसके मनन करने का और उसके पश्चात् अनुसरण करने का भी ध्यान रखो । तभी सुना हुआ पल्ले पड़ेगा और उस से आत्मा को कुछ लाभ हासिल हो सकेगा।
आज हमारा विषय अनित्यता है । अगर आप इस पर ध्यान देंगे तथा संसार की अनित्यता पर गम्भीरतापूर्वक मनन करेंगे तो आपकी आत्मा स्वयं ही धीरे-धीरे संसार से विरक्त होती जाएगी। पर खेद की बात है कि लाखों लोगों को प्रतिदिन मरते हुए देखकर भी अपनी मत्यु को याद नहीं रखता तथा जीवन से लाभ उठाना नहीं चाहता । संत-महापुरुष बार-बार हमें चेतावनी भी देते हैं जैसे
यह तन काँचा कुम्भ है, मांहि किया रहवास । कबिरा नैन निहारिया, नहीं पलक की आस ।। कबिरा जो दिन आज है, सो दिन नाहीं काल । चेत सके तो चेतिये, मीच परी है ख्याल । कबिरा सपने रैन के, उधरी आये नैन । जीव परा बह लट में, जगे तो लेन न देन ॥ आज काल कि पाँच दिन, जंगल होगा वास ॥
ऊपर ऊपर हल फिरे, ढोर चरेंगे घास ॥ कबीर जी कहते हैं- यह मनुष्य-शरीर मिट्टी के कच्चे घड़े के समान है और इसी में जीवात्मा निवास करता है । हम सदा आँखों से देखते हैं कि इसके निकल जाने में एक पल का भी भरोसा नहीं है। जिस तरह कच्चे घड़े को फूटने में देर नहीं लगती, उसी प्रकार इस शरीर के नष्ट होने में भी देर नहीं लगती । एक बार पलक के पकड़ने में जितनी देर लगती है, उतना भी इसका भरोसा नहीं है।
आगे कहा है-जो दिन आज है वह कल भी वैसा ही होगा यह कोई नहीं कह सकता । मौत सदा सिर पर सवार रहती है अतः हे जीव ! तू चेत सके तो तुरन्त ही चेत जा । अज्ञानी जीव बरसों का बन्दोवस्त करते हैं जैसे उतने समय तक वे निश्चय ही जीवित रहेंगे। किन्तु बरस छोड़कर महीने, दिन घंटे या पलभर की भी कोई गारंटी नहीं ले सकता । हँसता-खेलता व्यक्ति किस क्षण लुढ़क जाएगा कोई भी नहीं जान सकता । इसलिये मनुष्य को तो प्रतिपल सफर का प्रबन्ध करके तैयार रहना चाहिये । और वह बंदोबस्त
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